- भोपाल को अब धरती पर नहीं, आकाश को छूने की ज़रूरत - तालों का शहर नहीं बल्कि कंक्रीट का जंगल बनता जा रहा भोपाल - चारों दिशाओं में फैलता शहर, मूलभूत सुविधाएं नदारद - वसूली पूरी, सुविधाएं अधूरी भोपाल (ईएमएस)। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल अब “तालों का शहर” नहीं बल्कि “कंक्रीट का जंगल” बनता जा रहा है। पिछले एक दशक में शहर का विस्तार जितनी तेजी से हुआ है, उतनी तेजी से उसकी बुनियादी सुविधाओं में सुधार नहीं हो पाया। नई-नई कॉलोनियां तो चारों दिशाओं में उग आई हैं, परंतु इन इलाकों में न सड़कें पूरी हैं, न ड्रेनेज सिस्टम, न स्ट्रीट लाइटें और न ही कचरा प्रबंधन की ठोस व्यवस्था। नगर निगम ने पिछले दस वर्षों में शहर की सीमाएं तो बढ़ा दीं, लेकिन सुविधाओं का विस्तार वहीं रुक गया जहाँ पुराना भोपाल खत्म होता है। मिसरोद, कोलार, खजूरी, करोंद, बैरागढ़ छावनी, अवधपुरी, चिरायु और कटारा हिल्स जैसे इलाकों में तेजी से कॉलोनियां बस रही हैं। मास्टर प्लान 2031 के मुताबिक भोपाल का क्षेत्रफल 285 वर्ग किलोमीटर से बढ़कर अब लगभग 420 वर्ग किलोमीटर तक पहुँच गया है, लेकिन जल निकासी, सड़कों और सफाई व्यवस्था के मामले में हालात बदतर बने हुए हैं। कोलार रोड और अवधपुरी जैसे इलाकों में बरसात के दिनों में सड़कों का तालाब में बदल जाना आम बात है। कहीं नालियां नहीं हैं तो कहीं अधूरी पड़ी पाइपलाइनें लोगों के लिए परेशानी का सबब बनी हुई हैं। कई नए विस्तार क्षेत्रों में तो आज तक स्ट्रीट लाइटें तक नहीं लगीं, जबकि नगर निगम हर साल अरबों रुपये का टैक्स वसूल रहा है। निगम के 2024-25 के बजट के अनुसार, शहर से लगभग 2,700 करोड़ रुपये का राजस्व अर्जित किया जाना है, जिसमें प्रॉपर्टी टैक्स, जल कर, ट्रेड लाइसेंस और बिल्डिंग परमिशन शुल्क प्रमुख हैं। इसके बावजूद नागरिकों को बुनियादी सुविधाओं के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि शहर का क्षैतिज विस्तार (हॉरिजॉन्टल ग्रोथ) अब भोपाल की क्षमता से बाहर हो गया है। लगातार बढ़ती जनसंख्या और बेतरतीब विकास के कारण संसाधनों पर अत्यधिक दबाव बन गया है। शहरी विकास विशेषज्ञ सुयश कुल्श्रेठ के अनुसार, “अब समय आ गया है कि सरकार वर्टिकल डेवलेपमेंट की दिशा में कदम बढ़ाए। ऊँची इमारतें बनने से न केवल भूमि की बचत होगी, बल्कि पानी, सड़क, बिजली जैसी सुविधाओं को केंद्रीकृत ढंग से उपलब्ध कराना भी आसान होगा।” उन्होंने कहा कि 50 साल पहले एम.एन. बुच ने भी भोपाल को ऊँचा बनाने का सपना देखा था। उन्होंने वेतवा और त्रिवेणी अपार्टमेंट जैसी इमारतों के जरिए इस दिशा में शुरुआत की थी। भोपाल की भौगोलिक संरचना पहाड़ियों, तालाबों और सीमित सपाट भूमि को देखते हुए विशेषज्ञ मानते हैं कि ‘वर्टिकल ग्रोथ’ ही शहर के सतत विकास का समाधान है। इससे न केवल आवागमन सुगम होगा बल्कि ट्रैफिक और प्रदूषण जैसी समस्याओं पर भी नियंत्रण पाया जा सकेगा। स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट और मेट्रो रेल जैसी योजनाएं शहर की दिशा जरूर बदल रही हैं, लेकिन इनका वास्तविक लाभ तभी मिलेगा जब नगर निगम और टाउन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग मिलकर योजनाबद्ध विकास को प्राथमिकता दें। राजधानी भोपाल अब एक निर्णायक मोड़ पर है। अगर प्रशासन ने समय रहते ठोस नीति नहीं बनाई, तो यह शहर “स्मार्ट सिटी” से “अव्यवस्थित महानगर” बन सकता है। विशेषज्ञों और नागरिक संगठनों की मांग है कि सरकार को अब “वर्टिकल डेवलेपमेंट पॉलिसी” लागू करनी चाहिए, जिससे भोपाल न केवल सुंदर बने, बल्कि सुविधाओं से सुसज्जित और भविष्य के लिए तैयार शहर बन सके। -सिमटती जा रही हैं खेती की जमीनें राजधानी भोपाल में खेती की जमीनें तेजी से सिमटती जा रही हैं। शहर के आसपास के ग्रामीण इलाकों मिसरोद, खजूरी, कोलार, करोंद और अयोध्या बायपास में खेतों की जगह अब नई-नई कॉलोनियां और कमर्शियल प्रोजेक्ट बसते जा रहे हैं। लगातार बढ़ते शहरी विस्तार के कारण उपजाऊ भूमि का रकबा घटता जा रहा है। टाउन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग के अनुसार, पिछले एक दशक में भोपाल जिले में कृषि योग्य भूमि लगभग 25 प्रतिशत कम हुई है। सौरभ जैन अंकित