नई दिल्ली (ईएमएस)। स्वस्थ शरीर और संतुलित जीवन के लिए ब्रह्म मुहूर्त का समय सबसे शुभ, शांत और ऊर्जावान माना जाता है। यह वह समय होता है जब वातावरण में ऊर्जा का संचार सबसे अधिक होता है, जिससे शरीर, मन और आत्मा का संतुलन सहज रूप से स्थापित होता है। आयुर्वेद के अनुसार “ब्रह्ममुहुर्ते उत्तिष्ठेत्”, यानी सूर्योदय से करीब डेढ़ घंटा पहले उठना चाहिए। इस समय उठने वाले लोगों की स्मरण शक्ति, फेफड़ों की कार्यक्षमता और ध्यान की क्षमता बेहतर मानी जाती है। सुबह उठते ही सबसे पहले मुख-शुद्धि की सलाह दी जाती है। नीम, बबूल या खैर की दातून से दांत साफ करना और जीभ की परत को खुरचना चाहिए। इससे न केवल मुंह की दुर्गंध दूर होती है, बल्कि शरीर के अंदर जमा विषाक्त तत्व (टॉक्सिन्स) भी बाहर निकलते हैं, जिससे पाचन तंत्र सक्रिय हो जाता है। इसके बाद उषःपान यानी सुबह खाली पेट गुनगुना पानी पीना बेहद लाभदायक होता है। तांबे या मिट्टी के पात्र में रखा पानी पीने से कब्ज, गैस और त्वचा संबंधी समस्याएं दूर होती हैं। यह शरीर को भीतर से शुद्ध करता है और मेटाबॉलिज्म को बेहतर बनाता है। इसके बाद नाक और आंखों की शुद्धि पर ध्यान देना जरूरी है। सुबह ठंडे पानी से आंखें धोने और नाक में गाय के घी या अणु तेल की कुछ बूंदें डालने से आंखों की रोशनी बढ़ती है, साइनस की समस्या दूर होती है और दिमाग शांत रहता है। आयुर्वेद में इसे नस्य क्रिया कहा गया है, जो दिमाग को ताजगी देती है। योग, प्राणायाम और हल्के व्यायाम सुबह करने से शरीर में नई ऊर्जा का संचार होता है। सूर्य नमस्कार, ताड़ासन या अनुलोम-विलोम जैसे आसन रक्त संचार को बेहतर करते हैं और तनाव को कम करते हैं। यह शरीर को चुस्त और मन को एकाग्र बनाते हैं। इसके बाद स्नान करना आवश्यक है, जो केवल शरीर की सफाई ही नहीं, बल्कि मानसिक ताजगी का भी माध्यम है। ठंडे या गुनगुने पानी से स्नान करने से आलस्य मिटता है और दिन की शुरुआत सकारात्मक ऊर्जा के साथ होती है। स्नान के बाद पूजा या ध्यान करने से आत्मबल और मानसिक स्थिरता बढ़ती है। दिन की शुरुआत कृतज्ञता और शांति के भाव से करने वाला व्यक्ति पूरे दिन अधिक केंद्रित और प्रसन्न रहता है। अंत में, नाश्ता हल्का और पौष्टिक होना चाहिए जैसे फल, दलिया, मूंग की खिचड़ी या दूध। सुदामा/ईएमएस 06 नवंबर 2025