लेख
16-Nov-2025
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राजधानी दिल्ली में लाल किले के पास हुए विस्फोट ने देश की सुरक्षा व्यवस्था को गंभीर प्रश्नचिह्न खड़ा कर दिया है, क्योंकि जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ रही है, वैसे-वैसे आतंकवाद की भयावह परतें खुलती जा रही हैं। जिन खतरनाक खुलासों का पर्दाफाश हो रहा है, वे सिर्फ चिंता नहीं, बल्कि आतंक के बदलते स्वरूप की भयावह तस्वीर पेश करते हैं। जो नया खुलासा हुआ है, निःसंदेह प्रत्येक देशवासी को दहशत में में डालने वाला है, क्योंकि आतंकी देश के एक एक या दो जगहों में नहीं, बल्कि 32 जगहों में धमाके करने वाले वाले थे। यह सोच कर ही रूह कांप जा रहा है कि अगर आतंकी अपने मनसूबे में कामयाब हो जाते, तो फिर क्या होता। इससे एक बात यह भी साफ हो जाती है कि आतंकी अपना नेटवर्क पूरे देश में फैल चुका है। इसके साथ यह साफ हो गया है कि अब आतंकवाद किसी सीमित दायरे का मुद्दा नहीं, बल्कि ऐसे व्हाइट कॉलर नेटवर्क का रूप ले चुका है जिसके तार देश के प्रतिष्ठित संस्थानों, शिक्षण केंद्रों और उच्च शिक्षा प्राप्त वर्ग तक फैले हुए हैं।सफेद कोट और चिकित्सा जैसे पवित्र पेशे से जुड़े करीब दस उच्च शिक्षा प्राप्त डिग्री धारी डाॅक्टर अब तक इस आतंकी साजिश की कड़ी में लिप्त मिल चुके हैं इस वारदात ने पहली बार डाॅक्टर जैसे पवित्र पेशे पर आम आदमी के विश्वास और भरोसे को मटियामेट कर दिया है। वहीं एक संप्रदाय विशेष पर भी विश्वास का संकट पैदा करने के हालात बनाने का नापाक काम किया है खासकर काश्मीर मुस्लिमों को अब देश दुनिया भर में शंका की नजर झेलनी होगी। आपको बता दें कि अभी तक की जांच में पता चला है कि साजिश करने वाले आतंकी देश भर के विभिन्न स्थानों पर तैतीस गाडियों में विस्फोट करने का षडयंत्र कर रहे थे पहले इस मामले में सिर्फ चार गाड़ियों की बात सामने आई थी, लेकिन जांच एजेंसियों के नए इनपुट ने आतंकियों की योजना की व्यापकता को उजागर कर दिया है। ये गाड़ियां सिर्फ वाहन नहीं, आतंक की चलती फिरती फैक्टरियां थीं- जिनमें आई 20, मारुति सुजुकी ब्रेज़ा, स्विफ्ट डिजायर और फोर्ड इकोस्पोर्ट जैसी पुरानी कारों का इस्तेमाल किया जा रहा था। इन गाड़ियों को कई हाथों में ट्रांसफर किया गया था, ताकि पुलिस साजिशकर्ताओं तक न पहुंच सके। यह तरीका आतंकियों की चालाकी के साथ-साथ उनके व्यापक नेटवर्क की पुष्टि करता है। जांच में सामने आया है कि यह पूरी पूरी साजिश 6 दिसंबर को अयोध्या में हुई बाबरी मस्जिद विध्वंस की बरसी पर बदला लेने की नीयत नीयत से रची गई थी। 33 साल पुराने घटना का हवाला देकर आज भी देश को अस्थिर करने की कोशिशें जारी हैं, यह अपने आप में बेहद चिंताजनक है। इसके अलावा पहले इस धमाके को शुरू में एक स्थानीय घटना माना जा रहा था, लेकिन अब इसके तार अंतरराष्ट्रीय आतंकी नेटवर्क से जुड़ते नजर आ रहे हैं। और इससे भी अधिक चिंता की बात यह है कि यह साजिश किसी एक हमले तक सीमित नहीं थी, चल्कि देशभर में दहशत फैलाने की एक विस्तृत योजना का हिस्सा थी। जांच एजेंसियों के अनुसार, जैश-ए-मोहम्मद से जुड़े मॉड्यूल ने न केवल हथियार और विस्फोटक जुटाए थे, बल्कि 32 कारों को आईईडी से लैस कर आत्मघाती धमाकों के लिए तैयार किया जा रहा था। यह संयोग नहीं है कि इन कारों का उपयोग 6 दिसंबर को, बाबरी मस्जिद विध्वंस की बरसी पर, विभिन्न जगहों पर धमाके करने के लिए होना था। कई प्रमुख स्थानों को निशाना बनाया जाना था जिनमें सिर्फ दिल्ली में छह प्रमुख लोकेशन शामिल थीं। यह स्पष्ट संकेत है कि आतंकियों का मकसद सिर्फ दहशत फैलाना नहीं, बल्कि देश को कई मोर्चों पर अस्थिर करना था। इस पूरी साजिश को और गंभीर बनाता है इसका अंतरराष्ट्रीय पहलू। जांच एजेंसियों का मानना है कि तुर्किये में बैठे एक हैंडलर से उमर नवी लगातार संपर्क में था। हैंडलर का कोड नेम उकासा था। जांच में खुलासा हुआ है कि उमर 2022 में तुर्किये गया था, जहां उसने जैश-ए-मोहश्वमद और अंसार गजवत-उल-हिंद से जुड़े लोगों के साथ सीक्रेट मीटिंग की। टेलीग्राम से शुरू हुई बातचीत एन्क्रिप्टेड ऐप्स तक पहुंची, और वहीं कारों में विस्फोटक भरकर दिली और अयोध्या जैसे शहरों को दहलाने की साजिश रची गई। सुरक्षा सूत्रों के अनुसार, उकासा दिल्ली स्थित मॉड्यूल और प्रतिबंधित संगठनों जैश-ए-मोहम्मद और अंसारगजत उल हिंद के हैंडलरों के बीच मुख्य कड़ी के रूप में काम करता था। अधिकारियों ने बताया कि यह साजिश 2022 की शुरुआत शुरुआत में तुर्की में रची गई थी, जहां उमर और तीन अन्य जो सभी पाकिस्तान समर्थित दो समूहों से जुड़े थे, वहां गए थे। उमर मार्च 2022 में तुर्किये गया था और दो हफ्ते अंकारा में रहा था। उकासा ने ही उन्हें सीक्रेट सेल बनाने और डिजिटल फुटप्रिंट से बचने का तरीका बताया था। कथित तौर पर इस ऑपरेशन के लिए तीन कारें, एक हुंडई आई 20, एक लाल रंग की फोर्ड इकोस्पोर्ट और एक मारुति ब्रेजा खरीदी गई थीं। स्ट है कि आतंकवादी नेटवर्क की गतिविधियां अब सीमापार फैले हुए संरचनात्मक सहयोग से चल रही हैं। यह भी स्पष्ट हो चुका है कि भारत में स्लीपर सेल का जाल पहले से अधिक गंभीर व खतरनाक रूप ले चुका है।ऑपरेशन सिंदूर के बाद यह माना जा रहा था कि आतंकवादी संगठन भारत की धरती पर कोई बड़ा हमला करने की हिम्मत नहीं करेंगे। लेकिन इस घटना ने उस धारणा को पूरी तरह बदल दिया है। इस पूरी जांच का सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि यह कैसे संभव हुआ कि आतंकियों को दिल्ली जैसे शहर में सहानुभूति के ठिकाने मिल सके ? कश्मीर में दशकों से कुछ क्षेत्रों में आतंकी नेटवर्किंग के प्रति सहानुभूति का वातावरण बनता रहा है, जिससे आतंकियों को पनाह मिलती रही। लेकिन दिल्ली में ऐसा कोई इतिहास नहीं रहा है। ऐसे में यह सवाल और भी पेचीदा हो जाता है है कि आखिर आतंकियों ने यहां कैसे अपने नेटवर्क को सक्रिय किया और कैसे स्थानीय सहयोग हासिल किया? यह बात साफ दिखाती है कि सुरक्षा एजेंसियों को अब आतंकवाद के स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय दोनों आयामों को नए सिरे से समझने की आवश्यकता है। अब आवश्यकता इस बात की है कि जांच केवल आरोपियों को पकड़ने तक सीमित न रहे, बल्कि उससे आगे जाकर यह समझा जाए कि सिस्टम की ऐसी कौन-सी कमजोरियां हैं जिनका फायदा उठाकर आतंकियों ने इतनी बड़ी साजिश को जन्म दिया। यह भी अत्यंत जरूरी है कि देश की सुरक्षा प्रणाली में ऐसी दीर्घकालिक रणनीति तैयार की जाए जो आतंकवाद को केवल जड़ से उखाड़े ही नहीं, बल्कि उसकी संभावनाओं को भी समाप्त कर दे। आतंकवाद के खिलाफ प्रभावी लड़ाई केवल सुरक्षा एजेंसियों के बल पर नहीं लड़ी जा सकती। इसके लिए प्रशासन, खुफिया एजेंसियों और नागरिक समाज के बीच बेहतर तालमेल की आवश्यकता है। सबसे अहम बात यह है कि जनता की भागीदारी सुनिश्चित हो। किसी भी समाज में आतंकवादी विचारधारा तभी पनपती है जब उसे स्थानीय समर्थन या सहानुभूति मिलती है। इसलिए यह आवश्यक है कि ऐसे तत्वों की पहचान कर उन्हें सामाजिक रूप से अलग-थलग किया जाए। सुरक्षा रणनीति में यह भी स्पष्ट होना चाहिए कि भारत-विरोधी तत्व चाहे वे सक्रिय हों अथवा स्लीपर सेल को निष्प्रभावी करने के लिए बहु-स्तरीय योजना काम में लाई जाए। इसके तहत निगरानी तंत्र को आधुनिक तकनीक से लैस करना, अंतरराष्ट्रीय सहयोग को मजबूत करना और संवेदनशील स्थानों पर सुरक्षा ढांचे को और सुदृढ़ बनाना शामिल होना चाहिए। यह विस्फोट एक चेतावनी है कि आतंकवाद ने अपना रूप, साधन और संचालन का ढांचा बदल लिया है। इसलिए देश की सुरक्षा रणनीति भी अब पारंपरिक सीमाओं में बंधी नहीं रह सकती। भारत को ऐसी सुरक्षा नीति की जरूरत है जो न केवल वर्तमान खतरों को समाप्त करे बल्कि आने वाले समय में संभावित आतंकी हमलों को भी रोक सके। इस आतंक के नेटवर्क को पूरी तरह भंडाफोड़ करना और दोषियों को कड़ी सजा दिलाना ही जनता के मन में यह विश्वास स्थापित करेगा कि भारत आतंकवाद के खिलाफ अपनी लड़ाई में किसी भी कीमत पर पीछे हटने वाला नहीं है। देश को यह दिखाना होगा कि आतंकवाद चाहे कितनी भी गहरी जड़ें जमाने कीकोशिश करे, भारत की संकल्प शक्ति उससे कहीं अधिक मजबूत है।सरकार और नेतृत्व की दृढ़ ईच्छा शक्ति आतंकवाद के नासूर को नेस्तनाबूद करने में कामयाब होगी। (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं पिछले 38 वर्ष से लेखन और पत्रकारिता से जुड़े हैं) (यह लेखक के व्य‎‎‎क्तिगत ‎विचार हैं इससे संपादक का सहमत होना अ‎निवार्य नहीं है) .../ 16 नवम्बर/2025