बिहार चुनाव को लेकर बहुत ज्यादा खुश होने की जरुरत नहीं है सत्ता आती है जाती है इस संसार में एक दिन सबकुछ नस्ट होने वाला है लेकिन बिहार पर कितना कर्ज है उसे कैसे भरेंगे पैसे से वोट लेने की प्रथा जब चल पड़ी है तो बाद में पैसा ख़त्म होने पर वो फिर बदल जायेगा जहाँ तक चुनाव जीतने की बात है तो लोकसभा के बाद झारखण्ड में भी चुनाव हुए थे वहाँ हार मिली अतः जो होता है वो ईश्वर की मर्जी से होता है क्योंकि ऐ शरीर ही नश्वर है तो फिर भगवान राम सत्य है लोकसभा में जो सीटे मिली वो कहीं ना कहीं ऐ सबक दिया कि भगवान राम को राजनीती में मत घसीटे और बाद में जब ऐ मुद्दा को छोड़ कर विकास के कार्यों की ओर जनता के सामने नमन किया तभी जीत मिली भगवान राम की कृपा से ही मेरी सांस चल रही है जो आदि है ना अन्त है वही भगवान राम है जो मौत और जीवन से परे है वही भगवान राम है अतः इसपर राजनीति करना व्यर्थ है । जीत हार सत्ता विपक्ष जीवन में आते रहते हैं लोग चुनाव में हार जीत को लेकर आपस में व्यक्तिगत शत्रु हो जाते हैं और अंहकारी हो जाते हैं लेकिन एक समय के बाद ऐ खत्म होने लगता है, यश, पद, सत्ता, धन आदि के लिए लोगों के पीछे घूमने से आप आत्म-प्रतिष्ठा खो देंगे, तथा कुछ न मिलेगा और यदि मिला भी तो वह प्रतिष्ठा की कीमत चुकाने से दुःखद हो जायगा। प्रयत्न का अर्थ आत्म-पतन नहीं होना चाहिए।दृढ़ विश्वास रखो कि चरित्र का अपना ही एक महत्व है। चरित्र की दृढ़ता मन को सम्बल प्रदान करती है। आध्यात्मिकता मनुष्य को पलायन नहीं सिखाती है, बल्कि उसके अन्तर्जगत् को सुव्यवस्थित कर उसे कर्म की ओर प्रवृत्त करती है तथा उसे समभावजनित स्थायी सुख एवं शान्ति प्रदान करती है। अध्यात्म एक विज्ञान है, एक कला है, एक दर्शन है। अध्यात्म मानव के जीवन में जीने की कला के मूल रहस्य को उद्घाटित करा देता है। आध्यात्मिक वातावरण मानों मन के जख्मों को धोकर, उन पर दिव्य मरहम लगाकर मानव को मानसिक स्वस्थता प्रदान करता है। ध्यान का दैनिक अभ्यास स्वास्थ्य एवं शांति के लिए निद्रा की भाँति परम आवश्यक है। थकने पर निद्रा कैसी सुखदा प्रतीत होती है। निद्रा आने पर मनुष्य श्रेष्ठ संगीत, भोग्य पदार्थ एवं भौतिक सत्ता को भी भूल जाता है। वे हेय हो जाते हैं। मनुष्य की जाग्रत अवस्था में ध्यान, अन्तरंग का एक गहन सुख होता है, जो अनिर्वचनीय है। जीवन में भव्यतम क्या है, इसका दर्शन ध्यान द्वारा ही संभव है। इसकी तुलना में समस्त सुख फीके प्रतीत होने लगते हैं। ध्यान कोई तन्त्र-मन्त्र नहीं है। मन को विपरीत दिशा में अर्थात् बाहर से भीतर की ओर ले जाना और उसे विचारों के स्रोत्र के साथ जोड़ देना एक कला है, जिसे ध्यान कहते हैं। ध्यान मन की एकाग्रता नहीं है, बल्कि मन को भीतरी चेतना के साथ जोड़ना है। ध्यान एक साधना है, जिसके द्वारा हम अपने भीतर आत्मानन्द उपजाते हैं। केसर सब स्थानों पर उत्पन्न नहीं होता है; उसके लिए उपयुक्त स्थान खोजना होता है तथा एक विशेष पद्धति अपनाकर अथक परिश्रम करना होता है। वे सब इच्छाएं और भय हमारे ही हैं, जो हमें अनजाने ही दुःखी रखते हैं। वे हमें भीड़ की भाँति घेरकर मानो पकड़ लेने का प्रयत्न करते हैं। धैर्य रखें तथा तटस्थ द्रष्टा ही रहकर अपने भीतर के गहरे स्तर को भी देखते ही रहें। वास्तव में अवचेतन मन भी गतिमान तो निरन्तर रहता है, किंतु हमें इसी अवस्था में ही उसका यह ज्ञान होता है । तब हमारे अवधान के समक्ष अवचेतन मन उद्घटित अथवा नग्न होकर दीखने लगता है। अवचेतन (अचेतन) के अतल गह्वरों में उतरने पर, समस्त संस्कारों, इच्छाओं, आशाओं, निराशाओं, स्मृतियों की परतों को उठाकर, अथवा उनका भेदन कर गहरे स्तर पर चेतना की निर्ग्रन्थ, निर्मल, अखण्ड सत्ता का संदर्शन एवं संस्पर्श हो जाता है। नित्यप्रति ऐसा अभ्यास करने पर ध्यान की पूर्वावस्था में धीरे-धीरे चेतन तथा अवचेतन मन प्रायः शान्त होने लगेंगे और उनकी चंचलता शिथिल अथवा न्यूनतम हो जायेगी। यह एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है, जिसका गर्व भूलकर भी साधक को नहीं करना चाहिए। सत्य का अनुसंधता सदैव विनम्र रहता है। व्यक्तिगत हमला होने पर आपकी मान्यताओं एवं आस्थाओं की परीक्षा होती है। चरित्र ही आपकी सच्ची सत्ता है आपकी असली पहचान और शक्ति, आपकी प्रतिभा या धन-दौलत से कहीं ज़्यादा आपके नैतिक मूल्यों, ईमानदारी और व्यवहार से बनती है। चरित्र आपको जीवन की कठिनाइयों का सामना करने में मदद करता है, सम्मान दिलाता है, और दूसरों के लिए प्रेरणा बनता है। (यह लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं इससे संपादक का सहमत होना अनिवार्य नहीं है) .../ 16 नवम्बर/2025