लेख
19-Nov-2025
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देश की राजधानी दिल्ली की हल्की सर्दियों में 16 नवंबर 2025 की दोपहर जब नेशनल मीडिया सेंटर मै अपनी उपस्थित दर्ज का मौका मिला पी सी आई के विशेष आमंत्रित मीडिया कर्मी के रूप में।हालॉकि हम जैसे मान्यता प्राप्त मीडिया मित्रों के लिय नेशनल मीडिया केन्द सुचना व कार्य स्थल पर हम अवसर जाते रहते है।आज का यह सिर्फ़ एक औपचारिक समारोह नहीं था, बल्कि भारतीय लोकतंत्र की सबसे महत्वपूर्ण परंपराओं में से एक—प्रेस की स्वतंत्रता—का राष्ट्रीय उत्सव था।राष्ट्रीय प्रेस दिवस,जो भारतीय प्रेस परिषद की स्थापना का प्रतीक है, इस वर्ष एक ऐसे समय में आया जब दुनिया भर में समाचारों की गति, सत्यता और विश्वसनीयता पर सबसे बड़ा सवाल खड़ा है।तकनीक के तीव्र बदलाव, आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस की विस्फोटक गति और सोशल मीडिया के अनियंत्रित प्रवाह ने सूचना को हथियार भी बना दिया है और भ्रम भी।ऐसे समय में प्रेस की भूमिका एक प्रहरी की है ,यह प्रहरी तभी प्रभावी हो सकता है जब उसकी स्वतंत्रता के साथ उसकी विश्वसनीयता भी अक्षुण्ण रहे।इस वर्ष के राष्ट्रीय प्रेस दिवस की थीम स्पष्ट और समकालीन थी— बढ़ती गलत सूचना के दौर में प्रेस की विश्वसनीयता की रक्षा।यह विषय जितना आवश्यक है,उतना ही चुनौतीपूर्ण भी,क्योंकि आज की सूचना-प्रणाली वही नहीं है जो दस वर्ष पहले थी।आज खबरें न सिर्फ़ कई गुना तेजी से चलती हैं,बल्कि उनकी सच्चाई को चुनौती देने वाले साधन भी दस गुना शक्तिशाली हो चुके हैं।ए आई निर्मित सामग्री, डीपफेक, एल्गोरिद्म आधारित इको–चैंबर्स और ट्रेंड–चालित खबरों ने पत्रकारिता को एक नई नैतिक परीक्षा के सामने खड़ा कर दिया है।नेशनल मीडिया सेंटर का सभागार उस दोपहर कुछ आमंत्रित सदस्यों के रूप मेंपत्रकारों, संपादकों,मीडिया छात्रों और वरिष्ठ संचार विशेषज्ञों से भरा हुआ था। मंच पर देश के प्रतिनिधि के प्रमुख हस्तियाँ मौजूद थे।जन-संचार की उभरती चुनौतियों पर होने वाला यह संवाद जितना विशिष्ट था,उतना ही प्रासंगिक भी।इस मंच की गरिमा बढ़ा रहे थे प्रेस परिषद की अध्यक्ष न्यायमूर्ति(सेवानिवृत्त) रंजना प्रकाश देसाई,प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया (PTI) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी विजय जोशी,केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव, राज्य मंत्री डॉ. एल. मुरुगन और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित रहे।कार्यक्रम का प्रारंभ इस स्वीकारोक्ति के साथ हुआ कि प्रेस लोकतंत्र की आँख और कान है।यह वही संस्था है जो सत्ता की गतिविधियों पर निगाह रखती है, नागरिकों की आकांक्षाओं को स्वर देती है और समाज को सचेत करती है। लेकिन बदलते समय में इस भूमिका पर अभूतपूर्व दबाव है—क्योंकि सूचना की दुनिया अब मनुष्यों से अधिक मशीनों द्वारा संचालित होने लगी है।ऐसे में सबसे बड़ी चिंता यही है कि खबरों की सच्चाई मशीन के कोडों में कहीं विलुप्त न हो जाए और पत्रकार का नैतिक विवेक एल्गोरिद्म के आगे झुक न जाए।न्यायमूर्ति रंजना प्रकाश देसाई ने अपने संबोधन में यही चिंता और आशा दोनों को बड़ी सहजता से व्यक्त किया।उन्होंने कहा कि चाहे तकनीक कितनी भी उन्नत क्यों न हो जाए, ए आई कितना भी शक्तिशाली क्यों न बन जाए, मानव मस्तिष्क की जगह वह कभी नहीं ले सकता। निर्णय,संवेदना और जिम्मेदारी—ये तीन तत्व पत्रकारिता की आत्मा हैं,और इनका उद्गम मशीनों में नहीं,मनुष्यों में है।उन्होंने स्पष्ट कहा कि प्रेस परिषद का दायित्व दोहरा है—एक तरफ प्रेस की स्वतंत्रता की रक्षा तो दूसरी तरफ पत्रकारिता के आचार संहिता की मर्यादा को बनाए रखना।दोनों में संतुलन रखना ही लोकतंत्र की मजबूती का आधार है।उन्होंने बताया कि प्रेस परिषद ने हाल के वर्षों में कई समितियाँ और फैक्ट–फाइंडिंग टीमें गठित की हैं, जो पत्रकारिता में गलत प्रवृत्तियों, दुष्प्रचार, दुरुपयोग और दमनकारी स्थितियों की जाँच करती हैं।उनका कहना था कि पत्रकारों की वित्तीय सुरक्षा भी प्रेस के स्वस्थ भविष्य का हिस्सा है।यदि पत्रकार लगातार आर्थिक तनाव या असुरक्षा से जूझेगा तो उसका मनोबल और स्वतंत्रता दोनों प्रभावित होंगी। इसलिए,कल्याण योजनाओं और बीमा सुरक्षा को मजबूत करना भी पत्रकारिता की जिम्मेदारी का ही एक घटक है।उनका वक्तव्य जितना संतुलित था,उतना ही चेतावनीपूर्ण भी। उन्होंने कहा कि ए आई के बढ़ते उपयोग ने कई सुविधाएँ दी हैं—डेटा खोजने से लेकर कंटेंट विश्लेषण तक—लेकिन इसका अंधाधुंध उपयोग नुकसानदेह हो सकता है। पत्रकारों को तथ्य–जांच और सत्यापन को सर्वोपरि रखना होगा,चाहे मशीनें कितनी भी तेज़ और सुविधाजनक क्यों न लगें। माहौल तब और विचारोत्तेजक हुआ जब पी टी आई के सीईओ विजय जोशी ने अपना मुख्य संबोधन दिया। उनका भाषण न केवल सटीक विश्लेषण से भरा था,बल्कि पत्रकारिता के नैतिक आधार को फिर से जीवित कर देने वाला था। उन्होंने कहा कि आज समाज एक “इन्फोडेमिक” का सामना कर रहा है—जानकारी इतनी अधिक है कि उसमें सत्य को ढूँढ़ना कठिन हो गया है। ऐसे में उनकी एक पंक्ति पूरे सभागार के हृदय में उतर गई—“ पारंपरिक मीडिया में गति से अधिक सटीकता को महत्व दें,और डिजिटल मीडिया में एल्गोरिद्म–आधारित लोकप्रियता की जगह विश्वसनीयता को प्राथमिकता बनाएं।उन्होंने कटु किंतु सत्य बात कही कि पीत पत्रकारिता, पेड न्यूज़ और एजेंडा–चालित रिपोर्टिंग ने जनता के विश्वास को भारी क्षति पहुँचाई है। पत्रकारिता का मूल तत्व—निष्ठा, निष्पक्षता और सत्य—आज चुनौती के घेरे में हैं।उन्होंने यह भी कहा कि प्रेस की यह जिम्मेदारी है कि वह लोकतंत्र का प्रहरी बने,न कि किसी पक्ष का प्रचारक।पत्रकारिता न तो सत्ता की ताली बजाए और न विपक्ष का शंख फूँके।उसकी भूमिका सिर्फ़ जनता के प्रति जवाबदेही की होनी चाहिए।विजय जोशी ने पी टी आई की इतिहास का उल्लेख करते हुए बताया कि यह संस्था 99 समाचार पत्रों द्वारा स्थापित की गई थी और तब से आज तक सत्य, स्वतंत्रता और न्यायसंगत रिपोर्टिंग को ही अपना मूल मंत्र मानती आई है। आज जब डिजिटल मीडिया सच और झूठ को समान गति से आगे बढ़ा देता है,तब पत्रकारों के लिए दोहरा दायित्व है—पहले तथ्य की शुचिता सुनिश्चित करना और दूसरा, अपने पाठकों–दर्शकों को एल्गोरिद्म के भ्रमित जाल से सुरक्षित निकालना।उन्होंने पत्रकारिता के विद्यार्थियों और नए रिपोर्टरों को संबोधित करते हुए कहा कि भविष्य में सिर्फ़ वही पत्रकार सफल होगा जो नैतिकता और आलोचनात्मक सोच—दोनों में निपुण होगा।यह कौशल मशीनें कभी नहीं दे सकतीं। सत्य की रक्षा मानव विवेक ही कर सकता है।कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव की उपस्थिति भी उल्लेखनीय रही,हालांकि उन्होंने मंच से भाषण नहीं दिया।बाद में लंच के दौरान जब कुछ टीवी चैनलों ने उनसे प्रतिक्रिया चाही,तो उन्होंने संक्षिप्त टिप्पणी में यही कहा कि मीडिया क्षेत्र में तेजी से बदलती परिस्थितियों को देखते हुए सरकार सरलीकृत, पारदर्शी और तकनीक–आधारित प्रक्रियाओं को बढ़ावा दे रही है। उन्होंने प्रेस सेवा पोर्टल और पी आर पी एक्ट 2023 का उल्लेख कर बताया कि अब पंजीकरण और प्रशासनिक प्रक्रियाएँ अधिक सुलभ और डिजिटल रूप में उपलब्ध हैं। मंत्री की प्रतिक्रिया भले संक्षिप्त थी, लेकिन उसमें यह संकेत था कि तकनीक और नैतिकता दोनों साथ–साथ चलें—ऐसा ढाँचा तैयार करना समय की माँग है।कार्यक्रम के अंत में प्रेस परिषद की भूमिका और इतिहास पर संक्षिप्त चर्चा हुई।सर्व विदित रहें कि यह संस्था 1966 में संसद के एक अधिनियम द्वारा गठित की गई थी, जिसका उद्देश्य था प्रिंट मीडिया के लिए एक स्व-नियमन तंत्र स्थापित करना जो पत्रकारिता को सशक्त भी करे और अनुशासित भी। बाद में 1979 में इसे पुनः स्थापित किया गया,और तब से यह संस्था पत्रकारिता में गुणवत्ता और स्वतंत्रता दोनों की रक्षा में एक महत्त्वपूर्ण स्तंभ बनकर खड़ी है। प्रेस परिषद ने कई बार सरकारों को सलाह दी, मीडिया संस्थानों को चेताया, और पत्रकारों की स्वतंत्रता के पक्ष में अपनी आवाज़ बुलंद की।कार्यक्रम का समापन किसी औपचारिक घोषणा से अधिक एक सामूहिक संकल्प की तरह हुआ।पत्रकारिता को अपनी विश्वसनीयता बचाने के लिए न केवल तकनीकी कौशल बल्कि नैतिक दृढ़ता और मानवीय संवेदना की भी आवश्यकता है।ए आई के इस युग में जहाँ सूचना एक क्लिक में उपलब्ध है,वहीं गलत सूचना भी बिजली की गति से फैलती है। ऐसे में पत्रकार को सिर्फ़ खबरें नहीं लिखनी हैं, बल्कि सत्य की रक्षा, समाज का मार्गदर्शन और लोकतंत्र की आत्मा की सुरक्षा भी करनी है।2025 का राष्ट्रीय प्रेस दिवस एक चेतावनी भी था और प्रेरणा भी—चेतावनी इस बात की कि यदि पत्रकारिता ने अपना चरित्र खो दिया, तो सूचना का भ्रम लोकतंत्र को भीतर से खोखला कर देगा; और प्रेरणा इस बात की कि सत्य की लौ जलाए रखने वाले पत्रकार हमेशा रहे हैं और आगे भी रहेंगे। इस दिन का संदेश स्पष्ट था— ए आई चाहे जितना उन्नत हो जाए,मानव विवेक और नैतिक पत्रकारिता ही लोकतंत्र को टिकाए रख सकते हैं। सत्य, सटीकता और विश्वसनीयता का यह संग्राम आगे भी जारी रहेगा,और प्रेस परिषद,मीडिया संस्थान तथा पत्रकार समाज मिलकर इस चुनौती का सामना करेंगे। (स्वतंत्र पत्रकार) (यह लेखक के व्य‎‎‎क्तिगत ‎विचार हैं इससे संपादक का सहमत होना अ‎निवार्य नहीं है) .../ 19 नवम्बर/2025