रामचरितमानस कोई कहानी की किताब नहीं है, अपने मानस में, मन में देखा गया राम चरित्र है। हमें भी मानस के पात्रों को व्यक्ति रूप में नहीं, अन्तःकरण की वृत्ति के रूप में देखना है। ध्यान दें, तुलसीदास जी विनय पत्रिका में लिखते हैं- अपारे संसारे विषय विष पूरो जलनिधि रचित मन दनुज मय रूप धारी माने विषय वासना के जल से भरा यह संसार ही सागर है। इस संसार-सागर में, आपका मन ही मय दानव है, इसी के द्वारा रचित यह आपका शरीर ही लंका है। इस देह रूपी लंका का वास्तविक उत्तराधिकारी जीव रूपी विभीषण है। पर यह जीव रूपी विभीषण, मोह रूपी रावण, अहंकार रूपी कुम्भकरन, काम रूपी मेघनाद और वासना रूपी सूर्पनखा के वशीभूत है। जीव-विभीषण, भगवान का टूटा फूटा भजन तो करता है, पर अपनी आँखों से मोहादि के, सब प्रकार के अनाचार दुराचार पापाचार को देखता हुआ भी, मोह की सत्ता का विरोध नहीं करता। जब जीव के करोड़ों जन्मों का किया हुआ पुण्य, फल देने को खड़ा होता है, तब उसके जीवन में हनुमान रूपी संत आते हैं, तब ही जीव रूपी विभीषण को साहस होता है और वह मोहादि को चुनौती देता है। वह मोह रूपी रावण की लात तो खाता है, पर अन्ततः गिरता पड़ता भगवान की शरण में जाता है। भगवान अंतःकरण में अवतरित होकर, उतर कर, मोहादि का नाश कर देते हैं। और शान्ति रूपी सीता, जो मोह के कारण, हृदय रूपी अशोक वाटिका में बन्दी पड़ी थी, बंधन से मुक्त हो जाती है। यही असली दशहरा है।बाहर लाख रावण जलाओ, जब तक भीतर मोह की सत्ता है, जब तक भक्ति मोह वाटिका में बन्दी पड़ी है, तब तक आपके जीवन में चैन कहाँ? अब हमें भी इसी से सबक लेते हुये से मोह-रावण का नाश कर, ही सही मायने में भगवान राम की सच्ची आराधना होगी तभी जीवन में असली शांति और भगवान श्री राम के प्रति अपार श्रद्धा होगी ।भगवान श्री राम एक शुद्ध विचार है जो मर्यादा के पालन की प्रेरणा देता है। अतः इस चुनाव में भगवान राम अवश्य ही उसे मदद ही नहीं बल्कि आशीर्वाद देंगें जो उनका नाम प्रेम से लिया है भगवान श्री राम को क़ोई मामूली देवता समझना भूल होगी सम्पूर्ण विश्व का निर्माता एक मात्र ईश्वर है जिसके नाम जपने से ही प्राणी के अंदर सद्बुद्धि आती है और अन्त में मनुष्य की अंतिम यात्रा में राम नाम की गूंज से उसके आत्मा को शांति मिलती है जो भी भगवान श्री राम का सही मायने में भक्त हुआ उसे उसके प्रकाश से दुनिया की हर चीज बेकार लगने लगी और अंततः वो इसके लिए अपना प्राण तक दे दिया और अमर हो गए जैसे गया गुरू अर्जुन देव, गुरू तेगवहादुर बंदा बहादुर गुरुगोविन्द सिंह के सारे बच्चे जो अमर हो गए और अन्य गुरु जो राम को ही अपना सबकुछ माना सब ज्योतिपुंज में समा गए अतः भगवान श्री राम की महिमा अपरम्पार है इसके नाम जपने मात्र से प्राणी हर बंधनों से मुक्त हो अमर हो जाता है। (यह लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं इससे संपादक का सहमत होना अनिवार्य नहीं है) .../ 19 नवम्बर/2025