डिजिटल भारत की विश्वसनीयता पर सवाल है।भारत डिजिटल क्रांति के दौर से गुजर रहा है। सरकारी योजनाओं से लेकर बैंकिंग लेन-देन तक, लगभग हर व्यवस्था आज आधार से जुड़ी हुई है। लेकिन इसी आधार प्रणाली में यदि मृतक व्यक्ति जिंदा दिखने लगे, तो यह न केवल एक तकनीकी खामी है बल्कि नैतिक और आर्थिक भ्रष्टाचार का बड़ा स्रोत भी बन जाता है। पिछले कुछ वर्षों में यह देखा गया कि हजारों मृत व्यक्तियों के नाम पर योजनाओं का लाभ लिया जा रहा है, फर्जी खातों में पैसा जा रहा है, और यहां तक कि बैंक ऋण या पेंशन जैसे लाभ भी इसी धोखाधड़ी से वसूले जा रहे हैं। इन्हीं बढ़ती अनियमितताओं के बीच भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) ने एक बड़ा सर्वे शुरू किया है।मृतकों के आधार कार्ड की पहचान कर उन्हें निष्क्रिय करने का। यह कदम न केवल पारदर्शिता की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा, बल्कि भारत की डिजिटल पहचान प्रणाली को और मजबूत करेगा। आधार कार्ड बनने की प्रक्रिया 15 वर्ष पहले 2010 में शुरू हुई थी। तब इसका उद्देश्य था हर नागरिक को एक विशिष्ट पहचान देना ताकि सरकारी लाभ सीधे उनके खाते में पहुंच सके और बिचौलियों की भूमिका समाप्त हो। परंतु, वर्षों में यह पाया गया कि लाखों आधार कार्ड ऐसे लोगों के नाम पर सक्रिय हैं जो अब इस दुनिया में नहीं हैं। यह खामी केवल तकनीकी नहीं है।इसका दुरुपयोग बहुत बड़े पैमाने पर हुआ।पेंशन योजनाओं में मृतक व्यक्तियों के नाम से हर महीने रकम जारी होती रही। मनरेगा, प्रधानमंत्री आवास, किसान सम्मान निधि जैसी योजनाओं में भी कुछ लाभार्थी ऐसे निकले जिनकी मृत्यु वर्षों पहले हो चुकी थी।बैंक खातों में फर्जी लेनदेन, सरकारी सब्सिडी का गलत वितरण और बीमा धोखाधड़ी जैसे मामले इसी कारण बढ़े।इन सबने आधार प्रणाली की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न लगा दिया था। परंतु अब यूआईडीएआई ने इस स्थिति को सुधारने का ठोस संकल्प लिया है। *यूआईडीएआई की नई पहल* मृतक आधार पहचान अभियान यूआईडीएआई ने हाल ही में देशभर में एक राष्ट्रीय सर्वेक्षण अभियान शुरू किया है, जिसका उद्देश्य ऐसे सभी आधार कार्डों की पहचान करना जो मृत व्यक्तियों के नाम पर सक्रिय हैं। उन आधार नंबरों को निष्क्रिय करना, ताकि कोई भी व्यक्ति उनका दुरुपयोग न कर सके। जन्म-मृत्यु पंजीकरण प्रणाली को सीधे यूआईडी डेटाबेस से जोड़ने की कवायद शुरू की गई है। इस सर्वे के अंतर्गत स्थानीय प्रशासन, नगर निकाय, और पंचायत स्तर पर कर्मचारियों को निर्देश दिए गए हैं कि वे अपने क्षेत्र में मृत व्यक्तियों की सूची तैयार करें और आधार डेटाबेस से उसका मिलान करें। यह पहल न केवल पारदर्शिता को बढ़ाएगी बल्कि भविष्य में डेटा इंटीग्रेशन की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम होगी। मृतकों के नाम पर चल रहे आधार कार्ड का उपयोग कई तरह से होता है। किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद यदि उसका आधार नंबर बैंक खाते से जुड़ा रहे, तो कुछ लोग उसकी जानकारी का गलत उपयोग करते हैं। सरकारी योजनाओं में लाभार्थियों की सूची आधार पर बनती है। यदि मृतक का डेटा अपडेट नहीं होता, तो उसके नाम से लाभ उठाया जा सकता है। बीमा और पेंशन धोखाधड़ी में भी सम्भावना है। सेवानिवृत्त कर्मचारियों की मृत्यु के बाद भी आधार के आधार पर पेंशन निकलती रहती है। आधार से जुड़े मोबाइल सिम या वोटर आईडी में मृतक की पहचान बनी रहती है, जिससे फर्जी गतिविधियों को बल मिलता है। ऐसे केस ग्रामीण अंचलों में अनपढ़ लोगो के साथ होते है।उनको जानकारी नही होती है।अब केंद्र सरकार का दृष्टिकोण काफी सख्त और सकारात्मक है। प्रधानमंत्री और इलेक्ट्रॉनिक्स मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि डिजिटल इंडिया तभी सफल होगा जब उसकी जड़ें स्वच्छ और भरोसेमंद हों। प्रत्येक राज्य को मृतक नागरिकों का डेटा मासिक रूप से यूआईडीएआई को भेजना होगा। जन्म-मृत्यु पंजीकरण पोर्टल को आधार से जोड़ा जाएगा ताकि मृत्यु की सूचना मिलते ही आधार निष्क्रिय हो सके।योजनाओं में मृतक लाभार्थियों के नाम आने पर अधिकारियों पर जिम्मेदारी तय की जाएगी। भविष्य में कृत्रिम बुद्धिमत्ता से यह पता लगाया जाएगा कि कौनसे खातों में असामान्य गतिविधियां हो रही हैं। आधार योजना की शुरुआत 2009-2010 में हुई थी, जब नंदन नीलकेणी की अगुवाई में यूआईडीएआई का गठन किया गया। तब इसका उद्देश्य केवल पहचान देना था, लेकिन धीरे-धीरे यह वित्तीय और सामाजिक प्रणाली की रीढ़ बन गया।मोबाइल कनेक्शन का आधार है,सरकारी सब्सिडी के लिए आवश्यक है।डिजिटल भुगतान और ई-केवाईसी का केंद्र है। परंतु इतनी व्यापकता के साथ जिम्मेदारी भी बढ़ी। अब सरकार का लक्ष्य है कि यह पहचान केवल जीवित, सत्यापित और वर्तमान नागरिकों की हो। कई राज्यों में पिछले वर्षों में कुछ हैरान कर देने वाले मामले सामने आए है। उत्तरप्रदेश पंचायत में पंचायत योजना में 40,000 लाभार्थियों में से 2,000 मृतक निकले। बिहार में वृद्धावस्था पेंशन में 500 से अधिक मृत व्यक्ति हर महीने पैसा ले रहे थे। राजस्थान में मनरेगा भुगतान में मृतक मजदूरों के नाम से कार्य दिवस दिखाए गए।महाराष्ट्र में बीमा योजनाओं में मृतक किसानों के आधार से रकम निकाली गई। इन घटनाओं ने दिखाया कि यदि आधार डेटा अपडेट नहीं होगा तो फर्जीवाड़ा जारी रहेगा।यूआईडीएआई के सर्वे से होने वाले प्रमुख लाभ है।फर्जी कारोबार पर रोक लगेगी। मृतकों के नाम से चल रहे खातों, बीमा और योजनाओं में घपला बंद होगा। सरकारी धन की बचत होगी।हर वर्ष करोड़ों रुपये गलत खातों में जाते हैं, जिन्हें अब रोका जा सकेगा। डेटा की शुद्धता है कि आधार डेटाबेस अधिक सटीक और विश्वसनीय बनेगा। लोगों का भरोसाभी बढ़ेगा। आम नागरिकों का विश्वास बढ़ेगा कि उनकी पहचान सुरक्षित और सम्मानजनक है। राष्ट्रीय सुरक्षा में अहम भूमिका रहेगी। फर्जी पहचान के जरिये आतंक या अपराध करने की गुंजाइश कम होगी। सरकार और यूआईडीएआई को निम्न सुधारों पर काम करना चाहिए।मृत्यु की स्वचालित सूचना प्रणाली अस्पतालों और श्मशानों से सीधे यूआईडी डेटाबेस में सूचना भेजने की व्यवस्था हो। परिवार आधारित अपडेट प्रणाली जब किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है, तो परिवार के सदस्य को एक आधार मृत्यु अपडेट फॉर्म भरना अनिवार्य हो। ऑनलाइन वेरिफिकेशन सुविधा: हर नागरिक अपने परिवार के सदस्यों का आधार स्टेटस ऑनलाइन चेक कर सके। सार्वजनिक जागरूकता: लोगों को यह बताया जाए कि मृतक के आधार को निष्क्रिय कराना उनकी जिम्मेदारी है। यूआईडीएआई, गृह मंत्रालय, बैंकिंग सिस्टम और राज्य सरकारें मिलकर साझा डेटा सिस्टम बनाएँ।सिर्फ सरकार पर निर्भर रहना पर्याप्त नहीं है। नागरिकों की भी कुछ जिम्मेदारियाँ हैं। यदि परिवार में किसी की मृत्यु हो जाए तो तुरंत स्थानीय निकाय और यूआईडी केंद्र को सूचित करें। अपने आधार से जुड़े बैंक खातों और योजनाओं की नियमित जांच करें।फर्जीवाड़े या संदिग्ध गतिविधि दिखे तो यूआईडीएआई हेल्पलाइन पर शिकायत करें। *डिजिटल नैतिकता और पारदर्शिता की नई दिशा* यह सर्वे केवल एक तकनीकी अभियान नहीं, बल्कि डिजिटल नैतिकता की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है। जब नागरिक की पहचान साफ और सत्य होगी, तभी देश की योजनाएँ पारदर्शी बनेंगी। सरकार का यह रुख स्वागतयोग्य है क्योंकि अब वह केवल डेटा संग्रह नहीं कर रही, बल्कि डेटा की शुद्धता, विश्वसनीयता और सुरक्षा पर ध्यान दे रही है। मृतकों के आधार कार्डों की पहचान और उन्हें निष्क्रिय करने की यह पहल एक डिजिटल शुद्धिकरण अभियान की तरह है। यह न केवल सरकारी योजनाओं को पारदर्शी बनाएगा बल्कि देश की डिजिटल पहचान प्रणाली को भी भरोसेमंद बनाएगा।15 साल पहले जो आधार योजना शुरू हुई थी, वह अब अपने परिपक्व चरण में है। सरकार का यह अभिगम सही दिशा में है।जहाँ हर नागरिक की पहचान सच्ची, जीवित और सुरक्षित होगी। यदि यह अभियान सफल होता है तो भारत न केवल फर्जीवाड़े से मुक्त होगा, बल्कि विश्व का सबसे विश्वसनीय डिजिटल पहचान तंत्र भी बन जाएगा। ईएमएस / 19 नवम्बर 25