कुत्ते के काटने के बाद भी उपचार अधूरा रह जाने का परिवार का आरोप जेल में तबीयत बिगड़ने से लेकर जबलपुर जिला अस्पताल में मौत तक कई स्तरों पर चिकित्सा लापरवाही के संकेत। कटनी (ईएमएस)। न्यायिक अभिरक्षा में बंद अनिल कुमार (निवासी—बड़वारा) की जबलपुर जिला अस्पताल में इलाज के दौरान मौत हो गई। परिवार के अनुसार कुछ दिन पहले गांव में उसे एक पागल कुत्ते ने काट लिया था, जिसके बाद उसकी तबीयत लगातार बिगड़ती गई। इलाज शुरू तो हुआ पर एंटी-रेबीज इंजेक्शन का पूरा कोर्स पूरा नहीं हो पाया। गिरफ्तारी की पृष्ठभूमि और हिरासत का क्रम लगभग दो महीने पहले अनिल का गांव में कुछ लोगों से विवाद और मारपीट हुई थी। घटना के बाद वह फरार हो गया था। इसी मामले में 6 नवंबर को बड़वारा पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेजा गया। जेल में स्थिति बिगड़ी — उपचार रेफरल जेल में रहने के दौरान अनिल की तबीयत अचानक बिगड़ी। पहले स्थानीय अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां प्राथमिक उपचार के बाद हालत गंभीर देखते हुए उसे जबलपुर जिला अस्पताल रेफर किया गया। वहीं इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई। परिवार के आरोप—मानवाधिकार सुरक्षा में चूक! अनिल की मां का कहना है कि कुत्ते के काटने के बाद अनिल ने कुछ दिन तक किसी को यह बात नहीं बताई, और जब इलाज शुरू हुआ तो सिर्फ दो एंटी-रेबीज इंजेक्शन ही लग पाए थे। परिवार का आरोप है कि गिरफ्तारी और जेल भेजे जाने के कारण उसका उपचार अधूरा रह गया, और हिरासत के दौरान न तो समय पर उचित चिकित्सीय देखभाल हुई, न ही एंटी-रेबीज कोर्स पूरा कराया गया। यह मामला न्यायिक अभिरक्षा में बंदियों के स्वास्थ्य अधिकार, मानवाधिकार संरक्षण, और पुलिस-प्रशासन की चिकित्सा जिम्मेदारी को लेकर गंभीर सवाल खड़े करता है। कुत्ते के काटने जैसी स्थिति में एंटी-रेबीज उपचार का पूरा कोर्स अनिवार्य होता है—अधूरा उपचार जानलेवा साबित हो सकता है। अब मौत के बाद यह जांच आवश्यक हो गई है कि: क्या गिरफ्तारी से पहले और बाद में मेडिकल स्क्रीनिंग हुई? क्या जेल प्रशासन को कुत्ते के काटने की जानकारी दी गई थी? क्या एंटी-रेबीज कोर्स पूरा कराने में लापरवाही हुई? क्या चिकित्सकीय लापरवाही और हिरासत में मानवीय अधिकारों की सुरक्षा में चूक हुई? परिवार की ओर से लगाए गए आरोपों ने इस मौत को एक सामान्य घटना से उठाकर संभावित मानवाधिकार उल्लंघन के दायरे में ला दिया है। प्रशासनिक जांच की दिशा अब यह तय करेगी कि जिम्मेदारी किसकी थी—और क्या इस मौत को रोका जा सकता था।