राष्ट्रीय
03-Dec-2025
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नई दिल्ली,(ईएमएस)। सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों से जुड़े एक अहम मामले में फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया कि तलाकशुदा मुस्लिम महिला को निकाह के समय अपने मायके से लाया गया पूरा सामान, सोना-चांदी, नकदी तथा रिश्तेदारों-दोस्तों से मिले सभी उपहार वापस लेने का पूर्ण कानूनी अधिकार है। न्यायमूर्ति संजिव खन्ना की अगुवाई वाली पीठ ने यह भी कहा कि इन वस्तुओं को महिला की निजी संपत्ति माना जाएगा और तलाक के बाद इन्हें वापस करना बाध्यकारी होगा। न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की बेंच ने मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986 की धारा 3 की नई एवं व्यापक व्याख्या की। कोर्ट ने कहा कि इस धारा को केवल सिविल विवाद के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि संविधान द्वारा प्रदत्त लैंगिक समानता, गरिमा और आर्थिक स्वायत्तता के सिद्धांतों के अनुरूप समझा जाना चाहिए। पीठ ने 2001 के डैनियल लतीफी बनाम भारत संघ मामले का हवाला देते हुए कहा कि इस कानून का मूल उद्देश्य तलाक के बाद मुस्लिम महिला को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाना है। मामला कोलकाता की एक तलाकशुदा महिला का था, जिसने अपने पूर्व पति के खिलाफ 1986 के कानून के तहत याचिका दायर की थी। सुप्रीम कोर्ट ने महिला के दावे को पूरी तरह न्यायोचित मानते हुए पूर्व पति को 17,67,980 रुपये छह हफ्तों के अंदर महिला के बैंक खाते में जमा करने का निर्देश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने 2022 में कलकत्ता हाई कोर्ट के उस फैसले को पूरी तरह पलट दिया, जिसमें महिला के दावे को खारिज कर दिया गया था। शीर्ष अदालत ने हाई कोर्ट की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि हाई कोर्ट ने मामले को महज सिविल वाद की तरह देखा और निकाहनामे में दर्ज प्रविष्टियों के आधार पर सबूतों की गलत व्याख्या की। कोर्ट ने टिप्पणी की कि हाई कोर्ट ने कानून के सामाजिक न्याय के उद्देश्य को नजरअंदाज कर दिया और संवैधानिक मूल्यों से विमुख निर्णय दिया।यह फैसला देश भर में लाखों तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं के लिए राहत की खबर है। अब वे न सिर्फ मेहर व गुजारा भत्ता, बल्कि शादी में अपने मायके से लाया सामान और मिले सभी उपहार कानूनी रूप से वापस प्राप्त कर सकेंगी। कानूनी विशेषज्ञों ने इसे लैंगिक न्याय की दिशा में महत्वपूर्ण कदम बताया है। वीरेंद्र/ईएमएस/03दिसंबर2025