भारत की आर्थिक व्यवस्था ने पिछले एक दशक में जिस प्रकार के बदलावों का अनुभव किया है, वह केवल विकास दर और निवेश प्रवाह तक सीमित नहीं है, बल्कि शासन की पारदर्शिता, वित्तीय अनुशासन और भ्रष्टाचार के विरुद्ध निर्णायक लड़ाई में भी दिखाई देता है। आर्थिक अपराधों पर केंद्र सरकार द्वारा 2014 के बाद उठाए गए कठोर कदमों ने देश की प्रशासनिक कार्यशैली और जवाबदेही के पैमानों को नये सिरे से परिभाषित किया है। यह परिवर्तन अचानक नहीं आया, बल्कि दशकों से चली आ रही उन गलत नीतियों की प्रतिक्रिया के रूप में उभरा, जिन्होंने भ्रष्टाचार को राजनीति, समाज और उद्योग जगत में गहराई तक पनपने दिया था। आजादी के बाद से लंबे समय तक बनी रहने वाली स्थितियों ने आर्थिक अपराधों को फलने फूलने का अवसर दिया। सरकारी तंत्र में भ्रष्टाचार को लेकर शिथिलता, जांच एजेंसियों की सीमित शक्तियाँ, और ‘खाओ और खिलाओ’ की नीति ने ऐसे माहौल को जन्म दिया जहां बेनामी संपत्तियाँ, हवाला कारोबार, घोटाले और टैक्स चोरी आम बात हो चुकी थी। धीरे धीरे यह एक असंयमित वटवृक्ष की तरह फैलता गया और राष्ट्रीय संपत्ति का क्षरण होता रहा। लेकिन 2014 के बाद देश की आर्थिक और प्रशासनिक नीतियों में आए बदलावों ने भ्रष्टाचार के खिलाफ एक कठोर अभियान की नींव रखी। केंद्र द्वारा लागू की गई रणनीति का सबसे महत्वपूर्ण पहलू था बड़े पैमाने पर की गई जाँच और प्रवर्तन की कार्यवाही। वित्त मंत्री द्वारा संसद में दी गई जानकारी के अनुसार, प्रवर्तन निदेशालय ने अब तक 6444 मामलों में कार्यवाही की तथा 4189.89 करोड़ रुपये मूल्य की संपत्तियाँ जब्त कीं। ईडी ने 22 मामलों में 29 लोगों को गिरफ्तार भी किया है, जो यह दर्शाता है कि आर्थिक अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई केवल औपचारिकता न होकर एक ठोस और परिणामोन्मुख प्रयास बन चुकी है। आयकर विभाग की सक्रियता भी इसी दिशा का संकेत देती है। विभाग ने 20 हजार से अधिक मामलों में जांच की और 13,877 मामलों में कार्रवाई दर्ज की। इससे यह स्पष्ट होता है कि वित्तीय अनुशासन का दायरा केवल बड़े अपराधियों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि व्यापक स्तर पर टैक्स चोरी और अघोषित आय के स्रोतों को भी चिन्हित किया जा रहा है। आर्थिक अपराधों का स्वरूप भी समय के साथ बदलता गया है। पारंपरिक घोटालों और नकद लेनदेन की जगह अब डिजिटल माध्यमों, वर्चुअल असेट और क्रिप्टोकरेंसी जैसे आधुनिक साधनों ने ले ली है। इसी कारण केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड ने वर्चुअल डिजिटल असेट के लेनदेन में 44,057 नोटिस जारी कीं। खोजी अभियानों में 888.82 करोड़ की अघोषित आय पकड़ी गई। यह इसलिए संभव हो सका क्योंकि सरकार ने वित्तीय अपराधों की तकनीकी समझ और जांच तंत्र को मजबूत किया। डिजिटल निगरानी और डेटा इंटेलिजेंस के उपयोग ने अपराधियों के लिए छिपने की जगह कम कर दी है। हालांकि यह कहना गलत होगा कि भ्रष्टाचार पूरी तरह समाप्त हो चुका है। भारत जैसे विशाल और विविध देश में यह चुनौती अभी भी जटिल है। लेकिन इतना स्पष्ट है कि 2014 के बाद भ्रष्टाचार में गिरावट आई है और पारदर्शिता को बढ़ावा देने वाली नीतियाँ अधिक प्रभावी हुई हैं। फिर भी यह लड़ाई अधूरी है। समाज में ऐसी मानसिकता विकसित हो चुकी थी कि बेईमानी को किसी न किसी रूप में स्वीकार किया जाए या उसे व्यवस्था का स्वाभाविक हिस्सा माना जाए। इस मानसिकता को बदलना ही असली चुनौती है। जब तक आम नागरिक, व्यापारी और अधिकारी नैतिक ईमानदारी को अपनी प्राथमिकता नहीं मानेंगे, तब तक किसी भी कानून या नीतिगत सुधार के द्वारा भ्रष्टाचार को पूरी तरह समाप्त नहीं किया जा सकता। ईमानदारी केवल एक नैतिक मूल्य नहीं बल्कि राष्ट्र की प्रगति का आधार है। ईमानदार धन व्यक्ति को सुख और संतोष देता है, जबकि बेईमानी से कमाया गया धन न केवल सामाजिक प्रतिष्ठा को नष्ट करता है बल्कि व्यक्ति की मूल संपत्ति और मानसिक शांति को भी समाप्त कर देता है। कई उदाहरणों में देखा गया है कि अवैध संपत्ति चाहे कितनी भी बड़ी क्यों न हो, वह अंततः विवाद, अपराध और पतन का कारण बनती है। समाज में यदि ईमानदारी को सम्मान और बेईमानी को अपमान का दर्जा दिया जाए, तभी वास्तविक परिवर्तन संभव होगा। भ्रष्टाचार केवल आर्थिक समस्या नहीं बल्कि राष्ट्रीय चरित्र की चुनौती भी है। यह विकास को रोकता है, प्रशासनिक मशीनरी को कमजोर करता है और जनता के विश्वास को खत्म कर देता है। आर्थिक अपराधों को जड़मूल से समाप्त किए बिना भारत की तेज तरक्की का सपना अधूरा ही रहेगा। यह दुखद सत्य है कि भ्रष्टाचार की जड़ें मजबूत रही हैं, परंतु अब उन्हें उखाड़ने की दिशा में ठोस प्रयास हो रहे हैं। पारदर्शिता, डिजिटल अर्थव्यवस्था, कड़े कानून और कठोर दंड व्यवस्था ने इसकी गति को कम किया है, लेकिन अंतिम सफाई अभी भी शेष है। लूट खसोट की इस पुरानी आदत को बदलना होगा। यह बदलाव केवल सरकारी प्रयासों से नहीं बल्कि समाज की जागरूकता, नागरिकों की भागीदारी और पारदर्शी राजनीतिक संस्कृति से संभव होगा। प्रत्येक नागरिक का यह दायित्व है कि वह भ्रष्टाचार को न तो करे, न बढ़ावा दे और न ही उसे सहन करे। यह विचार धीरे धीरे देश के नए सामाजिक ढांचे का हिस्सा बनता जा रहा है, जो भविष्य में एक स्वच्छ, पारदर्शी और जवाबदेह भारत की नींव रखेगा। केंद्र द्वारा 2014 के बाद उठाए गए कठोर कदमों ने यह संदेश साफ तौर पर दिया है कि आर्थिक अपराधियों के लिए अब कोई ढील नहीं बचेगी। यह नीति भारत की आर्थिक सेहत को मजबूत बनाने के साथ साथ लोकतांत्रिक मूल्यों को सुरक्षित रखने की दिशा में भी महत्वपूर्ण है। अब आवश्यकता है कि हर स्तर पर इस अभियान को सामाजिक समर्थन मिले और ईमानदारी को भारतीय जीवन का अनिवार्य तत्व बनाया जाए। जब तक भ्रष्टाचार की सफाई जड़ से नहीं होगी, भारत की विकास यात्रा बाधित रहेगी, लेकिन एक मजबूत शुरुआत निश्चित रूप से हो चुकी है और देश इसी दिशा में दृढ़ता से आगे बढ़ रहा है। (वरिष्ठ पत्रकार, साहित्यकार,स्तम्भकार) (यह लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं इससे संपादक का सहमत होना अनिवार्य नहीं है) .../ 15 दिसम्बर /2025