लेख
17-Dec-2025
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भारतीय लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकत स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव प्रक्रिया मानी जाती है। इसी प्रक्रिया में सभी संवैधानिक अधिकार केंद्रीय चुनाव आयोग के पास हैं। संविधान ने व्यापक अधिकार और जिम्मेदारियाँ चुनाव आयोग को सौंपी हैं। इसके लिए संविधान में अधिकार और चुनाव आयोग ने नियम बना रखे हैं। बिहार में वोटरलिस्ट की विशेष गहन संशोधन (एसआईआर) प्रक्रिया के दौरान चुनाव आयोग ने ना तो संविधान के प्रावधान को माना, ना ही अपने नियमों को माना। हालिया खुलासों ने चुनाव आयोग की भूमिका और निष्पक्षता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। इंडियन एक्सप्रेस मे प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार इस पूरी प्रक्रिया में संविधान कानून और नियमों की अनदेखी की गई है। केंद्रीय चुनाव आयोग द्वारा जो कार्यवाही और प्रक्रिया अपनाई गई है, उसको लेकर चुनाव की निष्पक्षता तथा चुनाव प्रक्रिया को लेकर जो संकेत मिले हैं, वह लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए सबसे चिंताजनक स्थिति है। संविधान एवं चुनाव आयोग का कानून स्पष्ट रूप से कहता है। किसी भी मतदाता की पात्रता पर संदेह होने की स्थिति में नोटिस जारी करने का अधिकार केवल स्थानीय चुनाव अधिकारी (ईआरओ) के पास है। बिहार की एसआईआर में लाखों नोटिस, सीधे केंद्रीय चुनाव आयोग की ओर से पोर्टल में वोटर के नाम पर डाले गए हैं, जबकि इसकी ईआरओ को कोई जानकारी नहीं थी। केंद्रीय चुनाव आयोग ने वह काम किया है, जिसका उसके पास अधिकार ही नहीं था। केंद्रीय चुनाव आयोग का यह कृत्य चुनाव आयोग की निष्पक्षता मतदाताओं के मतदान के अधिकार खत्म करने और लोकतंत्र में मतदाताओं और राजनीतिक दलों के अधिकारों पर एक तरह से कुठाराघात किया गया है। चुनाव आयोग ने विकेंद्रीकृत चुनाव प्रक्रिया का केंद्रीकरण कर एक तरह से मनमानी की है और संविधान एवं कानून का स्पष्ट रूप से उल्लंघन किया है। संविधान ने नागरिकों के मतदान अधिकार को मौलिक अधिकारों में शामिल किया है। स्थानीय अधिकारियों के पास जो संवैधानिक अधिकार दिए गए थे उसे अवैध रूप से छीनने का काम भी चुनाव आयोग ने किया है। जो भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था को कमजोर करता है। इस रिपोर्ट का सबसे गंभीर पहलू यह है, नोटिस उन मतदाताओं को भेजे गए, जिनके नाम ड्राफ्ट वोटर लिस्ट में मौजूद थे। जिन्होंने सभी आवश्यक दस्तावेज समय पर जमा किए थे। सभी नोटिसों में एक तरह की आपत्ति एवं कारण लिखे गये। लाखों मतदाताओं के लिए एक समान वजह होना संभव ही नहीं था। चुनाव आयोग में जमा किए गए जो दस्तावेज नोटिस मे अधूरे या नाकाफी बताए गए थे, उन नोटिसों पर तारीख तक दर्ज नहीं थी। यह पूरी प्रक्रिया घोर लापरवाही और गैर कानूनी थी। यह खुलासा इस बात का सुबूत है कि केंद्रीय चुनाव आयोग ने सभी अधिकार अपने पास ले लिए हैं। जिसके कारण स्थानीय चुनाव अधिकारियों के अधिकारों का उपयोग भी चुनाव आयोग दिल्ली में बैठे-बैठे कर रहा है। केंद्रीय चुनाव आयोग का स्थानीय चुनाव अधिकारियों पर इस तरह की कार्रवाई सुनियोजित दबाव बनाने की कोशिश मानी जा रही है। जो आंकड़े और प्रक्रिया सामने आई है, वह चिंताजनक हैं। बिहार में एसआईआर के दौरान 68 लाख से अधिक मतदाताओं के नाम वोटर लिस्ट से हटाए गए थे, जिसके कारण वह मतदान नहीं कर पाए। मतदान का मौलिक अधिकार चुनाव आयोग द्वारा अवैधानिक रूप से खत्म कर दिया गया। केंद्रीय चुनाव आयोग के पोर्टल से जो नोटिस जारी हुए थे। उसमें से करीब 10 हजार मामलों में चुनाव आयोग ने स्पष्ट कारण भी नहीं बताया। इससे स्पष्ट है कि जो नाम हटाए गए और जो नोटिस जारी किए गए दोनों ही अवैधानिक कृत्य हैं। चुनाव आयोग की यह कार्यवाही चुनाव आयोग की जवाबदेही, आयोग की पारदर्शिता तथा निष्पक्षता पर गंभीर सवाल खड़े करती है। केंद्रीय चुनाव आयोग यह नहीं बता पा रहा है, कि जिन मतदाताओं के नाम मतदाता सूची में थे, उनके नाम क्यों काटे गए। ऐसी स्थिति में आम मतदाता कैसे मतदान के अधिकार को सुरक्षित रख पाएंगे। चुनाव आयोग के आयुक्तों और शीर्ष अधिकारियों के बयान और जमीनी हकीकत के बीच विरोधाभास साफ दिखाई दे रहा है। संविधान में उल्लेखित नियम और चुनाव आयोग के नियमों के अनुसार मतदाता के खिलाफ शिकायत ओर जांच के पश्चात ही आयोग किसी का नाम जोड़ या घटा सकता है। चुनाव आयोग को स्वयं संज्ञान लेकर किसी भी मतदाता का नाम हटाने का अधिकार नहीं है। बावजूद इसके बिहार की एसआईआर में यह सब हुआ है। जिस तरह से मतदाता सूची बनाने, मतदान की गणना, चुनाव परिणाम घोषित करने तथा शिकायतों की जांच कर अंतिम निर्णय केंद्रीय चुनाव आयोग द्वारा स्वयं या अपने पर्यवेक्षकों के माध्यम से कराया गया, इससे पूरी चुनावी व्यवस्था का केंद्रीकरण कर लिया गया है। केंद्रीय स्तर से नोटिस जारी किए जा रहे हैं। यह जानकारी सामने आने के बाद विपक्ष को “वोट चोरी” जैसे गंभीर आरोप पर आम जनता को भी विश्वास होने लगता है। लोकतंत्र सिर्फ चुनाव कराने से नहीं, बल्कि जनता का विश्वास चुनाव प्रक्रिया पर हो, तभी चुनाव की निष्पक्षता होती है। जो सरकार बनती है उस पर मतदाताओं को विश्वास होता है। अगर मतदाताओं को महसूस होने लगे, उनका नाम चुपचाप, बिना सुनवाई के काटा गया है, तो आम नागरिक और मतदाताओं का विश्वास टूटेगा। जरूरत इस बात की है, चुनाव आयोग इन आरोपों और गड़बड़ियों पर चुप्पी तोड़े। राजनीतिक दलों और मतदाताओं को पूरी चुनावी प्रक्रिया की स्वतंत्र एवं निष्पक्ष जांच निष्पक्ष एजेंसी से कराए। पारदर्शिता के साथ एसआईआर का सच मतदाताओं और राजनीतिक दलों के सामने रखे। जिस तरह की स्थितियां वर्तमान में बन गई हैं। उसको देखते हुए यह कहा जा सकता है। नागरिकों का चुनाव आयोग पर विश्वास खत्म होता जा रहा है। जिस तरह की स्थितियां बांग्लादेश में बनी थी। इस तरह की स्थिति भारत में भी बनती जा रही है। जो भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था को लेकर जो सवाल उठ रहें हैं। आगे चलकर वह राजनीति, कानून व्यवस्था, एवं लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं के लिए गंभीर चुनौती साबित होंगे। ईएमएस / 17 दिसम्बर 25