लेख
15-Dec-2025
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प्राचीन साहित्य के अन्तर्गत नेतृत्व करने वाले योगी नेतृत्व हुआ करता था जैसे रामायण काल. में महाराज जनक, रघु, अज, दिलीप, राम, भरत, गुरु वशिष्ट आदि ऋषि राजाओं में योग की वृत्ति विद्यमान थी।करोड़ों लोगों के मन में, ये धारणा और गहरे बैठा दी जाएगी कि इस शारीरिक व्यायाम को ही तो योग कहते हैं। तो असली योग का क्या हुआ, शरीर को स्वस्थ, मन को स्थिर और आत्मा को परमात्मस्वरूप में प्रतिष्ठित करने में अमोघ साधन के रूप में. हठयोग साधना का विशेष महत्त्व है जिसे नाथयोगियों सिद्धों और साधकों ने प्रचारित तथा प्रतिष्ठित किया है।राम का नाम स्वयं योग है, जिसके उच्चारण से मनुष्य हो जाता है भव सागर से पार यानी ज्ञान और कर्म के योग से संन्यास की उपलब्धि तक पहुंचती है। लोहा आग से निकलने के बाद ठंडा होता है परन्तु आग कहीं भी, कभी भी प्रज्वलित हो वह ठंडी नहीं होती, गरम ही होती है क्योंकि यह उनका प्राकृतिक गुणधर्म है।राम नाम की साधना राम नाम से ज्यादा आपके अच्छे कर्म के जरिये सकारात्मक माध्यम से राम नाम साधना एवं राम नाम की महिमा के बारे में पता चलता है कि किस प्रकार राम नाम जपते जपते साधना में लीन हो जाते है जिन्हें दीन दुनिया का नही पता बस सिर्फ वो सर्व शक्तिमान परमेश्वर का ध्यान है शक्तिमान का अर्थ यह नहीं है कि आग की उपस्थिति से लोहा गरम रहे और आग न रहे तो फिर ठंडा हो जाए। राम नाम की शक्ति के बाद व्यक्ति से साधना भी प्रभु वहीं कराएगी जो आपके कर्म में दम होगा और दो शक्तियां नहीं होती है। जिसने शक्तिपात किया और जिसके ऊपर हुआ वह दोनों एक ही है लेकिन योग में लय योग इनसे अलग है। लय योग का उद्येहश्य है कि मस्तिष्क शांत रहकर ब्रह्मलोक जैसा प्रकाशमान हो तथा मन निर्मल क्षीर सागर की तरह बनें। इसके लिए मस्तिष्क के ब्रह्मरंध पर ध्यान लगाकर चक्र और कुंडलिनी जागरण किया जाता है।जो सिर्फ और सिर्फ भगवान राम की महिमा से ही होगा क्योंकि जितने भी साधक हुए वो भगवान राम की भक्ति में लीन पाए गए कुछ आप ऐसे समझिए आप एक गिलास में पानी लेकर शरबत बनाना चाहते हैं उसके अंदर अपने चीनी डाली नमक डाला और तमाम चीज डाली और उसको खोल दिया तो उन सभी का अस्तित्व कहां चला गया वह पानी में घुल गया। उसके बाद में आपने उसे पानी को भी जलाना चालू कर दिया। तो वह जल करके राख भी वायु में मिल गई। वायु फिर आकाश में चली गई। मतलब यह हो गया की सब कुछ विलय हो गया मतलब आपस में घुल करके गायब हो गया। कुछ और समझे तो जैसे समुद्र में तरंग उठाती है फिर समुद्र में समा जाती है इस तरीके से हमारा मन जगत की ओर भागता है लेकिन फिर वह अंदर तो आता है लेकिन प्राण बिखरे रहते हैं तो हम कैसे अपने मन प्राण और चित तीनों को घोल दे मतलब ऑब्जर्वर इफेक्ट के रूप में हमको वह दिखे ही नहीं। इस दिशा में प्रयास करना है जो चतुष्ट योग है इसके जो चार मार्ग बताए गए हैं आरंभ के मतलब कि आप कुछ भी करो इन चार मार्ग से आपको अपनी यात्रा आरंभ करनी पड़ेगी तो यह किसी हाईवे की तरीके से जो फोर वे का बना हुआ है एक ही दिशा में जा रहा है उसके बीच में डिवाइड लगे रहते हैं लेकिन डिवाइडर के बीच में भी गैप होता है कभी-कभी गाड़ियों को इधर-उधर ले जाने का कुछ इसी प्रकार इन सभी योग में बहुत सी चीज कॉमन भी होती है कि आप इधर का माल उधर ले ले उधर का माल इधर ले ले और इसमें सब आपके सहयोग करेंगे। इसमें मन की वृत्तियों को शांत करना का होता है। प्राण भी अपनी मूल धारा में लौटता है और चित्र भी शून्य के समान निर्विकार अवस्था में जब चला जाता है तब यह लययोग आगे बढ़ता है। अब इसको हम क्रमानुसार समझेंगे हमारे अंदर जो करता का भाव है वह किसी भी योग में आरंभ में हमेशा रहता है जैसे हमने एक लाख गायत्री मंत्र का जाप किया दो लाख नवार्ण मंत्र का जाप किया और आज मैंने यह प्राणायाम लगाए। यह हमारे करता की भावना के साथ में हो रहा है। लेकिन जब हमारी कुंडलनी शक्ति जागृत हो जाती है और वह वास्तव में हर मार्ग में होती है किसी में पता लगता है किसी में पता नहीं लगता है लेकिन बिना कुंडलनी शक्ति के जागृत हुई आप आगे बढ़ ही नहीं सकते एक तरीके से यह वह संगम है जब तक मैं आप पर नहीं करेंगे तब तक मैं आप आगे बढ़ ही नहीं सकते। यह परंपराओं की बात है कुंडलनी शक्ति के जागृत के पहले तमाम घटनाएं घटती हैं विभिन्न परंपराओं में लोग इस मार्ग पर चलने के लिए प्रेरणा देते हैं लेकिन कुंडलनी जागरण उनसे दूर रहता है। लेकिन शक्तिपात परंपरा में शिष्य की कुंडलनी सीधे-सीधे जो भगवान राम आपमें वो शक्ति से जागृत कर देते हैं यह आपके ऊपर एक बहुत बड़ा उपकार होता है क्योंकि आप जिस मार्ग पर जन्मों जन्मों तक चल के पहुंच पाएंगे उनको भगवान राम ने शॉर्ट कर दिया मतलब उनका भगवान राम ने नकारात्मकता को दरकिनार करके आपको सीधे वह जो संगम है वहां तक पहुंचा दिया। अब क्या होता है जब कुंडली शक्ति जागृत होती है तब आपको क्रिया होती है वह सूक्ष्म भी हो सकती है स्थूल भी हो सकती है भाव में सबसे सुन्दर भगवान राम का नाम ही हो सकती है लेकिन आप जब अपने आसन पर बैठते हैं तो यह अपने आप जब आरंभ होती है तो आप यह सोचने को मजबूर हो जाते हैं यार यह तो मैं तो कर नहीं रहा हूं यह कौन कर रहा है तब हमारा अहंकार नष्ट होता है क्योंकि हमको महसूस हो जाता है कि इस शरीर में करने का जो कारण है वह कोई और है मैं नहीं हूं।अतः जब भगवान राम की ओर ध्यान लगाते हैं तो त्याग की भावना पैदा होती है ओर आपका शरीर में सकारात्मक ऊर्जा भरने लगता है और इस ब्रह्मांडीय अस्तित्व में सब कुछ परमाणुओं से बना है। आप 100% परमाणु हो। ये आपने सुना है लेकिन आपको ये प्रत्यक्ष नहीं। ये शरीर भी लघु रिएक्टर है। शक्तिपात क्रिटिकल होने को कहते हैं। बहुत पापड़ बेलने होते हैं। कथा कहानियों और कल्पना का इससे कोई संबंध नहीं है।ऐ परमाणु कण के रुप में भौतिक रूप में सबसे छोटा है जो दिखाई नहीँ देता और विज्ञान में इसे किसी तत्व का भौतिक गुण माना है लेकिन ऐ सबसे शुद्ध तत्व भगवान राम के कृपा के कण हैं जो सृष्टि में अनन्त रुप में है लययोग अर्थात् तत्त्वों को अपने-अपने मूल तत्त्वों में लय करते हुए, अन्त में आत्मा का परमात्मा में राम नाम का लय कर देना। इसी को लययोग कहते हैं। जैसे पृथ्वी तत्त्वका जलमें, जलतत्त्वका अग्नि में, अग्नितत्व का वायुतत्व में और वायुतत्व का आकाश तत्त्व में विलय करना यह पंचभूतों का लय हुआ। इसी प्रकार बाकी के तत्त्वों का अपने अपने तत्त्वों में लय करते हुए आत्मा का परमात्मा में लय करके उसी स्थिति में स्थित रहना ही लययोग का मुख्य उद्देश्य है। योग यानी जोड़ कण कण में राम है जोड़ दिया तो योग हो गया जैसे जैसे मोती को चुन चुन कर लाएंगे जो आपके अच्छे कर्म हैं तब भगवान राम आपको आगे बढ़ते हैं जो हमें धीरे-धीरे ध्यान और समाधि की ओर जाते हैं तब सजीव और निरजीव यानी सभी सविकल्प और निर्विकल्प इन दोनों के आप्शन रहते हैं और निर्विकल्प में जब हम आगे बढ़ जाते हैं सारे विकल्प छोड़ जाते हैं तब हमको परमात्मा भगवान राम का अनुभव होता है जो की अद्वैत होता है।मंत्र योग को और हटयोग को समझने का प्रयास किया। तो जहां पर मंत्र योग में अंदर की बात होती है यानी मन की जो हमारे अंदर अंदर और आकाश तत्व से उत्पन्न शब्द है उसकी पुनरावृत्ति की बात होती है। वही हठ योग में हम वही शरीर का अवलंबन लेकर विभिन्न आसन और प्राणायाम के द्वारा अपने है के द्वारा योग का अनुभूति करते हैं।अतः भगवान राम का नाम ही योग है ।जो जोड़ना वाला सबसे मजबूत तत्व है और नकारात्मक सोच से बचा कर सकारात्मक ऊर्जा देता है और यही नाम अन्त में सत्य होता है वो हमेशा सत्य की राह की ओर ले जाता है और कठिन से कठिन समय में आपको सही राह दिखाता है । संजय गोस्वामी/ईएमएस/15 दिसंबर2025