ढाका(ईएमएस)। बांग्लादेश की राजनीति आज एक ऐसे मोड़ पर खड़ी है जहाँ शांति का दावा करने वाली अंतरिम सरकार के पैर उखड़ते नजर आ रहे हैं। नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली सत्ता वर्तमान में भारी अशांति के दौर से गुजर रही है। देश के मौजूदा हालात चीख-चीख कर कह रहे हैं कि स्थितियां अब सरकार के नियंत्रण से बाहर होती जा रही हैं। इस अराजकता के केंद्र में है 32 वर्षीय युवा नेता उस्मान हादी की नृशंस हत्या, जिसने पूरे बांग्लादेश को हिला कर रख दिया है। उस्मान हादी केवल एक नाम नहीं थे, बल्कि वे 2024 के उस छात्र आंदोलन के सबसे प्रमुख चेहरों में से एक थे, जिसने शेख हसीना की सरकार को सत्ता से बेदखल करने में निर्णायक भूमिका निभाई थी। उन्हें उस विद्रोह का पोस्टरबॉय माना जाता था। उस्मान हादी की जीवन यात्रा और उनकी विचारधारा ने उन्हें बांग्लादेश के एक बड़े तबके में बेहद लोकप्रिय बना दिया था। 1994 में झालोकाठी जिले में जन्मे हादी इंकिलाब मंच नामक छात्र संगठन के वरिष्ठ नेता थे। वे आरक्षण सुधार आंदोलन के अग्रिम पंक्ति के योद्धा थे और उनकी तस्वीरें प्रदर्शनों की पहचान बन गई थीं। हालांकि, उनकी पहचान केवल एक छात्र नेता तक सीमित नहीं थी, उन्हें भारत-विरोधी बयानों और ग्रेटर बांग्लादेश की विवादित कल्पना को बढ़ावा देने के लिए भी जाना जाता था। उनकी बढ़ती लोकप्रियता ने उन्हें राजनीति के केंद्र में ला खड़ा किया था, लेकिन यही लोकप्रियता शायद उनकी जान की दुश्मन बन गई। घटनाक्रम के अनुसार, 12 दिसंबर 2025 को ढाका के पलटन इलाके में जब हादी एक बैटरी रिक्शा से चुनाव प्रचार के लिए जा रहे थे, तभी मोटरसाइकिल सवार नकाबपोश हमलावरों ने उनके सिर में गोली मार दी। इस हमले में उनके मस्तिष्क को गंभीर क्षति पहुंची। उन्हें तुरंत ढाका के अस्पताल में भर्ती कराया गया और स्थिति बिगड़ने पर 15 दिसंबर को एयर एंबुलेंस से सिंगापुर भेजा गया। छह दिनों तक मौत से संघर्ष करने के बाद, 18 दिसंबर को सिंगापुर के एक अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली। उनकी मौत की खबर फैलते ही बांग्लादेश की सड़कें एक बार फिर प्रदर्शनकारियों से भर गईं, जो अपने नेता के लिए न्याय और हत्यारों की तत्काल गिरफ्तारी की मांग कर रहे हैं। लापता है हादी का कातिल वर्तमान में सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि हादी का असली कातिल कौन है और वह कहां छिपा है? पुलिस ने इस मामले में फैसल करीम मसूद को मुख्य शूटर और आलमगीर शेख को सह-आरोपी के रूप में चिह्नित किया है। प्रशासन ने इन दोनों संदिग्धों की तस्वीरें जारी करते हुए उन पर 50 लाख टका का भारी-भरकम इनाम भी घोषित किया है। शुरुआती जांच के दौरान कुछ अपुष्ट खबरें आई थीं कि हत्यारे सीमा पार कर पड़ोसी देश भारत भाग गए हैं, लेकिन तकनीकी साक्ष्यों और गहन जांच के बाद इन दावों को खारिज कर दिया गया है। अब ढाका पुलिस ने आधिकारिक तौर पर स्वीकार किया है कि हत्यारे अभी भी बांग्लादेश की सीमाओं के भीतर ही कहीं छिपे हुए हैं। मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार इस पूरी घटना को आगामी चुनावों को बाधित करने की एक गहरी साजिश करार दे रही है। लेकिन बड़ा सवाल यह उठता है कि यदि यह महज एक साजिश है, तो देश का खुफिया और सुरक्षा तंत्र हत्यारों को बेनकाब करने में विफल क्यों साबित हो रहा है? हादी की हत्या ने न केवल एक उभरते राजनेता का अंत किया है, बल्कि इसने बांग्लादेश की कानून-व्यवस्था की पोल भी खोल दी है। जैसे-जैसे समय बीत रहा है, जनता का आक्रोश बढ़ता जा रहा है, जो आने वाले समय में यूनुस प्रशासन के लिए एक बड़ी राजनीतिक चुनौती बन सकता है। वीरेंद्र/ईएमएस 23 दिसंबर 2025