सिख इतिहास में यदि त्याग, साहस और धर्मनिष्ठा की पराकाष्ठा का कोई सर्वोच्च उदाहरण है, तो वह दसवें गुरु, श्री गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज के चार साहेबज़ादों की शहादत है। यह केवल इतिहास नहीं, बल्कि मानवता, धर्म और आत्मबल का वह उज्ज्वल दीप है, जो सदियों से करोड़ों लोगों को अन्याय के विरुद्ध खड़े होने की प्रेरणा देता आ रहा है। मुग़ल अत्याचारों के अंधकारमय काल में जब धर्म और आस्था पर प्रहार हो रहा था, तब गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपने पुत्रों को भी उसी पवित्र मार्ग पर चलना सिखाया, जहाँ धर्म की रक्षा सर्वोपरि थी — चाहे उसके लिए प्राणों की आहुति ही क्यों न देनी पड़े। बड़े साहेबज़ादे — अडिग वीरता के प्रतीक गुरु जी के ज्येष्ठ पुत्र साहेबज़ादा अजीत सिंह (18 वर्ष) और साहेबज़ादा जुझार सिंह (14 वर्ष) ने चमकौर के युद्ध में अत्यंत सीमित साधनों के बावजूद मुग़ल सेना के विरुद्ध अद्वितीय वीरता का परिचय दिया। उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि उम्र नहीं, बल्कि विचार और आस्था किसी योद्धा की शक्ति तय करते हैं। धर्म और स्वाभिमान की रक्षा करते हुए उन्होंने रणभूमि में वीरगति प्राप्त की और इतिहास में अमर हो गए। छोटे साहेबज़ादे — धर्म के प्रति अगाध निष्ठा और साहस की अनुपम मिसाल सबसे हृदयविदारक प्रसंग छोटे साहेबज़ादों, साहेबज़ादा जोरावर सिंह (9 वर्ष) और साहेबज़ादा फतेह सिंह (7 वर्ष) की शहादत का है। सरहिंद के नवाब वज़ीर ख़ान ने उन्हें इस्लाम स्वीकार करने का प्रलोभन दिया, किंतु बाल अवस्था में भी उन्होंने धर्म से विमुख होना स्वीकार नहीं किया। निर्मम अत्याचार के तहत उन्हें दीवार में ज़िंदा चिनवा दिया गया, फिर भी उनके मुख से न कोई भय निकला, न कोई शिकायत — केवल धर्म और गुरु के प्रति अडिग निष्ठा। दोनों छोटे साहबजादों को जब नवाब वजीर खान द्वारा दीवार में चुनवाया जा रहा था और जब दीवार छोटे साहबजादे बाबा फतेह सिंह जी के गले तक पहुंची तब साहेबजादा जोरावर सिंह और साहेबजादा फतेह सिंह के बीच आपसी बातचीत मार्मिक और भाइयों की धर्म परायणता के महत्व को दर्शाती है जो हम सभी के लिए प्रेरणा दायक है | जब छोटे साहेबजादे फतेह सिंह के गले तक दीवाल पहुंची तो बड़ी साहेबजादे जोरावर सिंह की आंखों में आंसू आ गए अपने बड़े भाई की आंखों में आंसू देख छोटे भाई साहेबजादे फतेह सिंह ने जोरावर सिंह से कहा क्या भैया आप मौत से डर रहे हैं ? हम गुरु गोविंद सिंह जी की औलाद है धर्म के लिए हम कोई समझौता नहीं कर सकते मर जाएंगे पर धर्म नहीं छोड़ेंगे, छोटे साहेबजादे फतेह सिंह की बात सुनकर बड़े साहेबजादे जोरावर सिंह ने कहा कि फतेह सिंह मैं मौत से नहीं डर रहा, मेरी आंखों में आंसू इसलिए आ गए हैं कि मैं बड़ा हूं और धर्म के लिए अपने प्राणों का बलिदान करने की जब बारी आई तो छोटा भाई बाजी मार रहा है, जबकि होना तो यह चाहिए था कि बड़े होने के नाते मेरी मौत पहले आती , परंतु छोटा होने के बावजूद धर्म के लिए मौत को गले लगाने का मौका पहले तुझे मिल रहा है | बड़े भाई साहेबजादा जोरावर सिंह जी की बात सुनकर छोटे भाई साहेबजादा फतेह सिंह जी कहां की दुखी मत हो आपको भी यह मौका मिलेगा यही वाहेगुरु की मर्जी है | मृत्यु के दरवाजे पर खड़े दोनों छोटे साहेबजादो की यह वार्ता इस बात का प्रतीक है कि धर्म की रक्षा के लिए दोनो साहेबजादे पहले न्योछावर होना चाहते थे | माता गुजरी जी का अद्वितीय त्याग इन साहेबज़ादों के साथ माता गुजरी जी का त्याग भी उतना ही महान है। अपने पौत्रों की शहादत का समाचार सुनकर उन्होंने भी ईश्वर स्मरण करते हुए अपने प्राण त्याग दिए। उनका धैर्य और विश्वास सम्पूर्ण मानवता के लिए प्रेरणा है। जब दोनों छोटे साहेबजादे वजीर खान की घोषणा अनुसार मौत को गले लगाने जा रहे थे तब माता गुजरी ने दोनों बच्चों को दूल्हों की तरह सजाकर मौत रुपी दुल्हन के पास भेजा था| शहादत जो युगों तक जीवित रहेगी चार साहेबज़ादों की शहादत हमें यह सिखाती है कि धर्म, सत्य और आत्मसम्मान के लिए किया गया बलिदान कभी व्यर्थ नहीं जाता। आज भी जब समाज अन्याय, भय और लोभ के सामने झुकने को मजबूर दिखता है, तब साहेबज़ादों का यह इतिहास हमें साहस से खड़े होने की शक्ति देता है। यह शहादत केवल सिखों की नहीं, बल्कि समस्त मानवता की धरोहर है। चार साहेबज़ादों का बलिदान सर्वसमाज को यह संदेश देता है कि “धर्म की रक्षा के लिए यदि सब कुछ भी खोना पड़े, तो भी सत्य का मार्ग नहीं छोड़ना चाहिए।” छत्तीसगढ़ सिख समाज प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय से अनुरोध करता है कि चार साहबजादो की शहादत की गाथा स्कूली पाठ्यक्रम में अति शीघ्र शामिल करें ताकि आज के युवा और आने वाली पीढ़ी इन धर्म रक्षों की शहादत को पढ़कर प्रेरणा ले सके | चार साहेबज़ादों की शहादत को शत्-शत् नमन। जो बोले सो निहाल… सत श्री अकाल। ईएमएस/25/12/2025