ढाका(ईएमएस)। बांग्लादेश की राजनीति में एक बड़ा मोड़ आ गया है। बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के कार्यवाहक अध्यक्ष और पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया के बेटे तारिक रहमान 17 साल के लंबे निर्वासन के बाद आखिरकार ढाका लौट आए हैं। आगामी फरवरी 2026 में प्रस्तावित राष्ट्रीय चुनावों से ठीक पहले उनकी वतन वापसी ने बीएनपी कार्यकर्ताओं के मनोबल को सातवें आसमान पर पहुंचा दिया है। हालांकि, तारिक रहमान की वापसी एक ऐसे समय में हुई है जब पूरा बांग्लादेश गहरे राजनीतिक संकट, अराजकता और हिंसक प्रदर्शनों की आग में झुलस रहा है। उनके सामने बड़ी चुनौती हैं हिंसा को रोकना। यहां अब तक उपद्रवियों ने 2900 हिंदुओं, ईसाइयों और बौद्धों को मौत के घाट उतार दिया गया है। पूर्व राष्ट्रपति जियाउर रहमान के बेटे तारिक रहमान के सामने सबसे बड़ी चुनौती देश की मौजूदा अस्थिरता है। शेख हसीना के सत्ता से बेदखल होने के बाद देश में जो शून्य पैदा हुआ, उसे भरने की कोशिशें अब भी संघर्षपूर्ण बनी हुई हैं। मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार वर्तमान में बेहद मुश्किल स्थिति का सामना कर रही है। जिन छात्र आंदोलनों के दम पर सरकार सत्ता में आई थी, अब वही लहर प्रशासन के नियंत्रण से बाहर होती दिख रही है। कट्टरपंथी छात्र नेता उस्मान शरीफ हादी की हत्या और उसके बाद न्याय की मांग को लेकर भड़की हिंसा ने कानून-व्यवस्था की धज्जियां उड़ा दी हैं। मीडिया कार्यालयों और सांस्कृतिक समूहों पर हो रहे लगातार हमलों ने वैश्विक स्तर पर चिंता पैदा कर दी है। इस राजनीतिक अस्थिरता के बीच सबसे चिंताजनक पहलू अल्पसंख्यक समुदायों, विशेषकर हिंदुओं के खिलाफ बढ़ती हिंसा है। हाल के दिनों में अल्पसंख्यक हिंदुओं की मॉब लिंचिंग की कई वीभत्स घटनाएं सामने आई हैं। भारत सरकार के विदेश मंत्रालय ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि वे बांग्लादेश में हिंदू, ईसाई और बौद्ध समुदायों के खिलाफ हो रही हिंसा को लेकर गंभीर रूप से चिंतित हैं। आंकड़ों के अनुसार, अंतरिम सरकार के कार्यकाल के दौरान अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा की लगभग 2,900 घटनाएं दर्ज की गई हैं। भारतीय नेताओं ने भी आरोप लगाया है कि बांग्लादेश में हिंदुओं को जानबूझकर निशाना बनाया जा रहा है ताकि उन्हें पलायन के लिए मजबूर कर उनकी संपत्तियों पर कब्जा किया जा सके। दूसरी ओर, चुनाव की आहट मिलते ही गठबंधन की राजनीति भी गरमा गई है। नेशनल सिटीजन पार्टी (एनसीपी) और रूढ़िवादी जमात-ए-इस्लामी के बीच सीट बंटवारे की चर्चाएं जोरों पर हैं। हालांकि, एनसीपी के भीतर इस संभावित गठबंधन को लेकर गहरा विद्रोह देखने को मिल रहा है। पार्टी की वरिष्ठ महिला नेताओं ने स्पष्ट कर दिया है कि चरमपंथी पृष्ठभूमि वाली जमात-ए-इस्लामी के साथ हाथ मिलाने से पार्टी की स्वतंत्र पहचान खत्म हो जाएगी। उन्होंने इस समझौते के तहत चुनाव लड़ने तक से इनकार कर दिया है। संयुक्त राष्ट्र ने भी निष्पक्ष चुनावी प्रक्रिया सुनिश्चित करने पर जोर दिया है। अब देखना यह होगा कि तारिक रहमान की वापसी और अवामी लीग पर प्रतिबंध के बाद बीएनपी इस राजनीतिक अराजकता के बीच अपनी सत्ता की राह कैसे तैयार करती है। वीरेंद्र/ईएमएस/27दिसंबर2025