अंतर्राष्ट्रीय
27-Dec-2025


वाशिंगटन,(ईएमएस)। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में उत्तर-पश्चिम नाइजीरिया में इस्लामिक स्टेट (आईएसआईएस) के ठिकानों पर हवाई हमले करने का आदेश दिया। ट्रंप ने कहा कि इस समूह के आतंकवादी नाइजीरिया में निर्दोष ईसाइयों को मार रहे थे, इसलिए अमेरिकी सेना ने उन्हें निशाना बनाया। ट्रंप ने इसकी जानकारी को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म साझा कर कहा कि अमेरिकी सेना ने आईएसआईएस के ठिकानों पर सटीक और शक्तिशाली हमले किए। हालांकि, नाइजीरियाई अधिकारियों ने अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के दावे का खंडन किया। उनका कहना है कि देश में हिंसा मुख्य रूप से धर्म आधारित नहीं है। नाइजीरिया में ईसाई और मुसलमान दोनों ही समूह हिंसा का शिकार हो रहे हैं। कुछ हिस्सों में चरवाहों और किसानों के बीच भूमि विवाद, आपराधिक हमले और अपहरण जैसी घटनाएँ भी बढ़ रही हैं। नाइजीरिया आधिकारिक तौर पर धर्मनिरपेक्ष देश है, जहाँ आबादी का लगभग 53 प्रतिशत मुस्लिम और 45 प्रतिशत ईसाई है। अमेरिका में दक्षिणपंथी समूह हिंसा को धार्मिक उत्पीड़न के रूप में पेश करते हैं, खासकर ईसाइयों के खिलाफ। इस कारण ट्रंप ने हमलों का आदेश दिया और इसे वैश्विक स्तर पर ईसाइयों के संरक्षण के रूप में प्रस्तुत किया। वहीं, नाइजीरियाई सरकार इस हिंसा को केवल धार्मिक संघर्ष के रूप में नहीं देखती। उनका कहना है कि हथियारबंद समूह मुसलमानों और ईसाइयों दोनों को प्रभावित करते हैं और किसी एक धर्म को निशाना नहीं बनाते। मॉनिटरिंग समूहों ने भी इस बात पर ध्यान दिलाया कि ईसाइयों पर हमले की संख्या मुसलमानों के मुकाबले अधिक होने का कोई ठोस प्रमाण नहीं है। इसके बावजूद, नाइजीरियाई सेना ने आतंकवादी गुटों के खिलाफ अपनी ताकत बढ़ाने और उन्हें कुशलता से नष्ट करने के लिए अमेरिका के साथ सहयोग करने का निर्णय लिया। अमेरिकी और नाइजीरियाई सेनाओं ने मिलकर ऑपरेशन किया और आतंकवादियों को निशाना बनाया। यह साझेदारी नाइजीरिया की सुरक्षा और क्षेत्रीय स्थिरता को मजबूत करने में मदद कर रही है। इस घटना से यह स्पष्ट होता है कि अमेरिका का दावा और नाइजीरियाई सरकार की वास्तविक स्थिति में फर्क है। जबकि ट्रंप ने हमले को ईसाइयों के संरक्षण और आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई के रूप में प्रस्तुत किया, नाइजीरियाई सरकार इसे व्यापक सुरक्षा चुनौती के रूप में देखती है। आशीष दुबे / 27 दिसंबर 2025