- अरब सागर की बालू से फूटते हैं चने-लाई और भूनी जाती है मूंगफल्ली जगदलपुर (ईएमएस)। जानकारों के मुताबिक बस्तर के नदी-नालों में मिलने वाली रेत की क्वालिटी निर्माण के लिए बेहतर है. बस्तर की रेत इन दिनों सीमायी प्रांत ओड़िशा से आंध्रप्रदेश और तेलंगाना तक ले जाई जाती है। अब तो छग सरकार ने रेत खदानों की नीलामी ई-टेडर के जरिए शुरु कर दी है। रेत माफिया पैदा हो गए हैं। अरबसागर के गोपालपुर (ओड़िशा) से मंगवाते हैं। धोक के काम में आने वाली रेत के 100 किलो की एक बोरी के दाम 450 रूपये चुकाने पड़ते हैं। बस्तर के नदी-नालों में भारी मात्रा में बालू निकलती है, लेकिन इस बालू में भाड़ फोड़ने का दम नहीं होता। लाई-चना व्यवसायी राजकुमार गुप्ता ने बताया कि बस्तर की रेत में मिट्टी की मात्रा अधिक होती है। जिसके कारण अरब सागर की रेत का उपयोग, लाई चना फोड़ने के लिए किया जाता है। उन्होंने बताया ओड़िशा के गोपालपुर जो कि समुद्री तट से लगा हुआ है, वहां से काफी बालू मंगवाई जाती है। दूरी अधिक होने के कारण दाम भी अधिक चुकाने पड़ते हैं। बस्तर में भी कुछ जगहों पर रेत की क्वालिटी ठीक है, जिसे सागर से आने वाली रेत के साथ मिलाकर उपयोग किया जाता है। बस्तर की प्रमुख नदियों में मिलने वाली रेत अलग-अलग प्रकार की होती है। कुछ जगहों पर मोटी और कई जगहों पर बारीक रेत पायी जाती है। इसके बीच की रेत की क्वालिटी सबसे अच्छी होती है। लोहंडीगुड़ा, काकड़ीघाट की रेत भवन बनाने वाले ठेकेदारों की पहली पसंद होती है।