लेख
29-Dec-2025
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केंद्र सरकार को सपना आया कि अगर राजभवन को लोकभवन कर दिया जाये तो क्रांति हो जायेगी।लोकभवन सत्य पर सवार हो जायेगा और सभी काम समय पर संपादित किए जायेंगे। लेकिन इसका हाल देखिए। ति मां भागलपुर विश्वविद्यालय के कुलपति की कुर्सी पांच माह पूर्व खाली हो गयी और लोकभवन में बैठे हुए लोग आज तक कुलपति नियुक्त नहीं कर पाये। वे कुलपति का प्रभार किसी और विश्वविद्यालय के कुलपति को सौंप कर कान में तेल देकर सोये रहते हैं। लोकभवन में बैठे हुए कुलाधिपति को मालूम रहता है कि अमुक तारीख को कुलपति रिटायर्ड हो जायेंगे तो फिर वे समय के साथ कुलपति की नियुक्ति की प्रक्रिया क्यों नहीं शुरू करते? किसका इंतज़ार रहता है? इतनी लापरवाही क्यों है? जो लोकभवन समय के साथ कुलपति नियुक्त नहीं कर सकता , वह विश्वविद्यालयों की देखरेख क्या करेगा? उच्च शिक्षा को गर्त में ले जाने वाले में से एक कुलाधिपति भी हैं। इस लोकभवन की लापरवाही से बिहार के विश्वविद्यालय बर्बाद हो रहे हैं। इस भवन ने ऐसे ऐसे कुलपति नियुक्त किए हैं, जिन्हें शिक्षा से शायद ही कुछ लेना देना हो। ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा के कुलपति नियुक्त हुए हैं। उन पर तरह तरह के आरोप हैं। एक निजी इंजीनियरिंग कालेज में कार्यरत शिक्षक सीधे प्रधानाचार्य होता है। उस वक्त उनके पास पीएच - डी डिग्री नहीं है। हाईकोर्ट में मुकदमा होता है। हाईकोर्ट कुलाधिपति को निर्देश देता है कि इस पर अपना निर्णय लें। इस संचिका यानी फाइल पर कुलाधिपति कोई निर्णय नहीं लेते। साल दर साल बीतता जाता है। ऐसे प्रधानाचार्य अपना ट्रांसफर दूसरे विश्वविद्यालय में करवा लेता है। वहां वह जिस जिस कालेज में जाता है, वहां उस पर आरोप लगते हैं। उस पर विश्वविद्यालय जांच समिति गठित होती है। जांच समिति को ऐसे प्रधानाचार्य खूब डिस्टर्ब करते हैं। जांच समिति के सदस्यों को प्रताड़ित करने की कोशिश करते हैं। दो कालेज पर बनी समिति अपनी रिपोर्ट देती है। तीसरे कालेज पर आज तक समिति बनी हुई है और निष्क्रिय है। कुलपति उन पर कोई कार्रवाई नहीं करते। जब ऐसे प्रधानाचार्य के संबंध में कुलपति से रिपोर्ट मांगी जाती है तो कुलपति जांच रिपोर्ट का हवाला देते हुए कुलाधिपति को लिखते हैं कि इन पर अमुक अमुक चार्ज है, तब भी उनकी नियुक्ति कुलपति के पद पर हो जाती है। सच पूछिए तो इस तरह के वाकये में कुलपति की नियुक्ति के लिए गठित स्क्रीनिंग कमेटी, मुख्यमंत्री और कुलाधिपति सभी दोषी हैं। इनकी आंखों पर पट्टी क्यों लगी है? इसकी व्याख्या बहुत कठिन नहीं है। कोई मक्खी यों ही नहीं निगलता। इसके लिए मूल्य चुकाने होते हैं। यह मूल्य पैरवी और पैसे के रूप में चुकाए जाते हैं, लेकिन इस मूल्य के बदले में मरती है उच्च शिक्षा। ऐसे लोग जब कुलपति नियुक्त होकर आते हैं तो हर फाइल का वजन तौलते हैं। भ्रष्टाचार का खजाना खुल जाता है। कुलपति को चमचे - बेलचे बहुत मिल जाते हैं। जिन शिक्षकों के अंदर का शिक्षक मर जाता है, वे कुलपति के चरण चुंबन करते हैं। मैं एक शिक्षक को जानता हूं। आजकल वे प्रधानाचार्य हैं। वे कुलपति ( महिला) के पति से जब मिलते थे तो वे विनम्रता की मूर्ति बन पति से प्रार्थना करते थे कि हुजूर, जूते उतार दें। आपके चरण पर नत मस्तक होना है। शिक्षक की रीढ़ अगर टूट जाये तो वह शिक्षक काहे का? मैंने यह भी सुना है कि ऐसे शिक्षक अपने जूनियर या रिसर्च स्कॉलर से कक्षा करवाते हैं और हस्ताक्षर अपना लगाते हैं। बिहार की उच्च शिक्षा को सुधारना है तो उदार मन का कर्तव्यनिष्ठ शिक्षाविद चाहिए। जो शिक्षा, शिक्षक और पूरे तंत्र को समझ सके। ईएमएस / 29 दिसम्बर 25