नरसिंहपुर (ईएमएस)। मप्र जनअभियान परिषद के तत्वाधान में जिला पंचायत अध्यक्ष श्रीमती ज्योति नीलेश काकोडिया की अध्यक्षता और रघुनाथ दास महाराज के मुख्य आतिथ्य में शासकीय स्वामी विवेकानंद महाविद्यालय नरसिंहपुर में आदि शंकराचार्य जी की जयंती के अवसर पर व्याख्यान कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में नगर के प्रतिष्ठित आचार्यों का सम्मान शाल श्रीफल से किया गया। कार्यक्रम के मुख्यातिथि पूज्य महन्त श्री रघुनाथ दास महाराज ने कहा कि आदिगुरु श्री शंकराचार्य जी का 2532 वां प्राकट्य दिवस है। आज से 2500 वर्ष पूर्व आचार्य शंकर ने दर्शन और ज्ञान से परिपूर्ण अध्यात्म की एक परंपरा दी और लगभग 252 रचनाएं सनातन धर्मियों को आराधन के लिए सृजित की। भारतीय सीमा क्षेत्र उत्तर- दक्षिण- पूरब- पश्चिम को एक सूत्र में पिरोकर अखण्ड भारत को प्रस्तुत किया। उन्हें कुंभ का प्रवर्तक भी कहा जाता है। जिला पंचायत अध्यक्ष श्रीमती ज्योति नीलेश ककोड़िया ने भी अपने विचार व्यक्त किए। मुख्यवक्ता स्वामी मानदानंद ने कहा कि आदि शंकराचार्य जी ने बाल्यकाल से ही अद्भुत मेधा और वैदिक जिज्ञासा से ओतप्रोत, उन्होंने अपने अद्वैत दर्शन से भारतीय ज्ञान परंपरा को अद्वितीय ऊँचाई प्रदान की। केवल 32 वर्षों के जीवनकाल में देश के चारों दिशाओं में मठों की स्थापना की। उन्होंने आध्यात्मिक एकता और सांस्कृतिक अखंडता को सुदृढ़ आधार दिया। विशिष्ट अतिथि मंहन्त श्री बालकदास ने कहा कि आचार्य शंकर मात्र दार्शनिक नहीं थे, अपितु वे वैदिकधर्म के संस्थापक और भारतवर्ष के उद्धारक भी थे। उनका चरित्र अत्यंत उज्ज्वल तथा उदात्त था। वे एक आदर्श राष्ट्रनायक, भारतीय अस्मिता और राष्ट्रीय चेतना के आधारस्तम्भ और महान आचार्य थे। मप्र जनअभियान परिषद के जिला समन्वयक जयनारायण शर्मा ने कहा कि भारत की सांस्कृतिक व सामाजिक एकता के लिये आदि शंकर ने भारत के उत्तर, दक्षिण, पूर्व व पश्चिम दिशाओं में चार केन्द्र शंकर मठ के रूप में उनकी स्थापना अध्यात्म, संस्कृति और समाज जागरण पूर्वक राष्ट्रीय एकात्मकता के प्रचार- प्रसार केंद्र के रूप में ही किया। इस अवसर पर साध्वी गीतांजली देवी, निरंजन, विपिन चंद दुबे, नवांकुर संस्था प्रतिनिधि, ग्राम विकास प्रस्फुटन समितियों, स्वैच्छिक संगठनों के प्रतिनिधियों, सीएमसीएलडीपी पाठ्यक्रम के छात्र-छात्राओं व परामर्शदाता और नागरिक मौजूद थे। कार्यक्रम का संचालन परिषद की समन्वयक श्रीमती माधवी पाठक तथा आभार श्री धर्मेंद्र चौहान ने किया। ईएमएस/12/05/2025