राज्य
02-Sep-2025
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जज को फोन लगाने से गरमाई सियासत, हाईकोर्ट ने केस मुख्य न्यायाधीश को भेजा जबलपुर (ईएमएस)। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में सोमवार को सुनवाई के दौरान एक ऐसा घटनाक्रम सामने आया जिसने अदालत से लेकर राजनीतिक गलियारों तक हलचल मचा दी। अवैध खनन से जुड़े “आशुतोष दीक्षित बनाम आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ (ईओडब्लू)” केस की सुनवाई कर रहे न्यायमूर्ति विशाल मिश्रा ने अचानक खुद को इस याचिका से अलग कर लिया। वजह थी भाजपा विधायक संजय पाठक का नाम, जिन्हें लेकर अदालत ने साफ कहा कि उन्होंने जज साहब को सीधे फोन पर बातचीत की कोशिश की। न्यायमूर्ति विशाल मिश्रा ने आदेश में उल्लेख किया कि “श्री संजय पाठक ने इस विशेष मामले के संबंध में चर्चा करने के लिए मुझसे फोन पर संपर्क करने का प्रयास किया है। अतः मैं इस केस की सुनवाई करने का इच्छुक नहीं हूं।” कोर्ट ने इस “फोन कांड” को बेहद गंभीर मानते हुए केस को तुरंत मुख्य न्यायाधीश के पास भेज दिया। अब यह तय करना मुख्य न्यायाधीश का काम होगा कि मामला किस बेंच में सुना जाएगा। मामला क्या है? याचिकाकर्ता आशुतोष दीक्षित ने ईओडब्लू में बड़े पैमाने पर अवैध खनन की शिकायत दर्ज कराई थी। आरोप था कि निर्धारित समय सीमा के भीतर जांच पूरी नहीं की गई। इसी निष्क्रियता के खिलाफ उन्होंने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। इसी दौरान भाजपा विधायक संजय पाठक, जो मूल याचिका के पक्षकार नहीं थे, ने हस्तक्षेप का आवेदन दायर कर अपनी बात रखने की अनुमति मांगी। यहीं से सारा विवाद शुरू हुआ। कोर्ट रूम का माहौल सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता एस.आर. ताम्रकार और अंकित चोपड़ा पेश हुए, जबकि प्रतिवादी (ईओडब्लू) की तरफ से मधुर शुक्ला ने दलीलें दीं। हस्तक्षेपकर्ताओं की ओर से अंशुमान सिंह (वीसी से) और वासु जैन मौजूद रहे। अदालत ने खास तौर पर हस्तक्षेप आवेदन (आइए 16218/2025) का उल्लेख किया, जो निर्मला पाठक (पत्नी स्व. सत्येन्द्र पाठक) और यश पाठक (पुत्र संजय सत्येन्द्र पाठक) द्वारा दाखिल किया गया है। सियासी रंग गहराया इस घटनाक्रम ने कानूनी लड़ाई को सीधा राजनीतिक रंग दे दिया है। विपक्ष अब सवाल उठा रहा है कि क्या भाजपा विधायक अपने राजनीतिक रसूख का इस्तेमाल कर न्यायिक प्रक्रिया पर असर डालने की कोशिश कर रहे हैं? फोन से “न्याय तय करने” का प्रयास न सिर्फ नैतिकता पर प्रश्नचिन्ह है, बल्कि भाजपा की छवि के लिए भी सिरदर्द बनता जा रहा है। कांग्रेस नेताओं ने इसे “न्यायपालिका पर दबाव बनाने की भाजपा की आदत” करार दिया है। अब आगे क्या? मुख्य न्यायाधीश अब यह तय करेंगे कि यह केस किस बेंच में सुना जाएगा। लेकिन सवाल यह भी है कि क्या संजय पाठक के “फोन कनेक्शन” की गूंज सिर्फ कोर्ट तक सीमित रहेगी, या सियासी मंचों पर भी भाजपा को इसका खामियाजा उठाना पड़ेगा।