राज्य
14-Oct-2025
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- बॉम्बे हाईकोर्ट ने दिया मृतक के परिजन को 6 लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश - यह फैसला राज्य की सभी नगर निगमों पर लागू मुंबई, (ईएमएस)। मुंबई, ठाणे समेत राज्य के सभी नगर निगम क्षेत्रों में सड़कों की हालत बेहद खराब हो गई है और सड़कों पर जगह-जगह गड्ढे हो गए हैं। इन गड्ढों के कारण होने वाली दुर्घटनाओं में भारी वृद्धि हुई है। अब बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस गंभीर समस्या का संज्ञान लिया है और नगर निगम प्रशासन को कड़ी फटकार लगाई है। हाईकोर्ट ने स्पष्ट आदेश दिया है कि भविष्य में गड्ढों के कारण होने वाली दुर्घटनाओं में यदि किसी की जान जाती है, तो संबंधित नगर निगम 50 हजार रुपये से लेकर 6 लाख रुपये तक का मुआवजा दें। यह फैसला राज्य की सभी नगर निगमों पर लागू है। हाईकोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा है कि गड्ढों के कारण होने वाली दुर्घटनाओं का कारण नगर निगम अधिकारियों की लापरवाही है। कोर्ट ने इस मुद्दे पर नगर निगम प्रशासन की कड़ी आलोचना की। हाईकोर्ट ने कहा है कि, भविष्य में यदि गड्ढों के कारण किसी निर्दोष व्यक्ति की मृत्यु होती है, तो संबंधित ठेकेदार और नगर निगम प्रशासन पूरी तरह से जिम्मेदार होगा। हाईकोर्ट ने ऐसे मामलों में संबंधित ठेकेदार से दुर्घटना के कारण हुई क्षतिपूर्ति राशि वसूलने के लिए प्रत्येक नगर निगम में एक अलग समिति गठित करने का भी आदेश दिया है। * दुर्घटना पीड़ित अब मुआवजे के पात्र गड्ढों या खुले नालों के कारण होने वाली मृत्यु के मामलों में, मृतक के कानूनी उत्तराधिकारियों को अब 6 लाख रुपये तक का मुआवजा मिल सकेगा। साथ ही, चोट की प्रकृति के आधार पर 50 हजार रुपये से लेकर 2.5 लाख रुपये तक का मुआवजा दिया जाएगा। हाईकोर्ट ने आदेश दिया है कि प्रत्येक नगर निगम इन मुआवजे के दावों की जाँच और सही आंकड़ा निर्धारित करने के लिए एक अलग समिति गठित करे। मुआवजा देने में देरी होने पर संबंधित अधिकारी जिम्मेदार होगा और दावे की तिथि से 9 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से मुआवजा राशि पर ब्याज भी लगाया जाएगा, यह भी हाईकोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट रूप से कहा है। * क्या है याचिका ? वर्ष 2018 में, बॉम्बे हाई कोर्ट ने गड्ढों और खुले मैनहोल के मुद्दे पर विभिन्न निर्देश जारी किए थे। हालाँकि, एडवोकेट रुजु ठक्कर ने अदालत में अवमानना ​​याचिका दायर कर आरोप लगाया था कि राज्य के सभी नगर निगम इन निर्देशों के अनुसार सड़कों का रखरखाव करने में विफल रहे हैं। इसके बाद हाईकोर्ट ने पिछले साल एक विस्तृत आदेश के साथ इस याचिका का निपटारा कर दिया था, लेकिन संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत नागरिकों के जीवन और सुरक्षा के मौलिक अधिकार, साथ ही जनता के हित और गड्ढों के मुद्दे की बढ़ती गंभीरता को देखते हुए, अदालत ने मूल सुमोटो जनहित याचिका को पुनः सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया है। इस याचिका पर सोमवार को न्यायमूर्ति रेवती मोहिते-डेरे और न्यायमूर्ति संदेश पाटिल की पीठ के समक्ष सुनवाई हुई। अपने 77 पृष्ठों के फैसले में, अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा है कि राज्य सरकार और संबंधित नगर निगम प्रशासन गड्ढों के लिए पूरी तरह से जिम्मेदार है। अदालत ने रेखांकित किया है कि गड्ढों से होने वाली दुर्घटनाओं के लिए न केवल ठेकेदार, बल्कि संबंधित प्रशासनिक अधिकारी भी समान रूप से जिम्मेदार हैं। इसलिए, आदेश में यह भी निर्देश दिया गया है कि ऐसे अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए। बहरहाल हाईकोर्ट ने इन आदेशों का पालन हुआ है या नहीं, इसकी जाँच के लिए अगली सुनवाई 21 नवंबर तक स्थगित कर दी है। संजय/संतोष झा- १४ अक्टूबर/२०२५/ईएमएस