राज्य
15-Oct-2025
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* जिले में आयोजित होगा प्रदेश स्तरीय विस्थापन पीड़ितों का महासम्मेलन * कोरबा में चल रहे भू-विस्थापितों के आंदोलन को छत्तीसगढ़ बचाव आंदोलन का मिला समर्थन कोरबा (ईएमएस) सार्वजनिक क्षेत्र के वृहद उपक्रम कोल् इंडिया की अनुसांगिक कंपनी एसईसीएल बिलासपुर के अधीन कोरबा-पश्चिम क्षेत्र में स्थापित एवं संचालित खुले मुहाने की गेवरा कोयला परियोजना अंतर्गत एसईसीएल की मेगा परियोजना द्वारा लगातार कोयला खदानों का विस्तार, हसदेव जंगल की कटाई और बांगो बांध में हुए विस्थापितों का दर्द और विस्थापितों के अधिकारों पर हो रहे हमले भविष्य के लिए एक गंभीर चिंता को दर्शाता है। यह भी अकाट्य सत्य हैं की उद्योगिक विकास के साथ-साथ अनेक विसंगतिया भी पनपती हैं, किंतु सभी संभावनाओं और आशंकाओ को ध्यान में रखकर सुनियोजित ढंग से विकास किया जाय, तो विसंगतियो पर प्रभावी नियंत्रण भी रखा जा सकता हैं। इन सभी क्रियांवयनों में मानवीय संवेदनाओ का भी ध्यान रखना चाहिए अन्यथा प्रकृति और नैसर्गिकता से निःशुल्क प्राप्त ये उपहार ही आम वेदना पोषक बन जाएंगे। कोरबा अंचल की कोयला खदानों से प्रभावी और लाभयुक्त बनाने के लिये परिस्थितियो से उभरी विसंगतियो का निराकरण अभाव इनके स्वरुप को विकासशील की बजाय विनाशशील बना देगा। भू-अर्जन के समय युक्तायुक्त मुआवजा, व्यस्थापन और रोजगार की उपेक्षा कदापि स्वीकार नहीं मानी जाएगी। इन सब प्रक्रियाओं में बल और छल का सहारा लेने की बजाय विद्वतापूर्ण सर्व स्वीकार निर्णय ही यथोचित होगा। आयोजित पत्रकारवार्ता में वक्ताओं ने 5वीं अनुसूची ग्राम सभा के अधिकारों का पालन, भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 के प्रावधानों को लागू करने और पूर्व में अधिग्रहित भूमि का वर्तमान बाजार दर पर मुआवजा देने की मांग उठाई। उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा की 1960 के दशक से लेकर आज तक कोरबा जिले में हुए कोयला खदानों के लगातार विस्तार से समस्याओं उत्पन्न हुई है। यह संकट केवल मौजूदा विस्थापन तक सीमित नहीं है, बल्कि आने वाले वर्षों में कोरबा के लाखों निवासियों के जीवन पर गहरा असर डालेगा। * कृषि भूमि का विनाश और खाद्य संकट आरोप हैं की दशकों से हो रहे खनन ने हमारी बहुमूल्य कृषि भूमि को उजाड़ दिया है। एक तरफ एसईसीएल विस्थापन के नाम पर लोगों की जीवनरेखा छीन रहा है, वहीं दूसरी तरफ हसदेव नदी, जीवनदायनी जंगल का विनाश के कारण पर्यावरण और जल संकट उत्पन्न हो रहा हैं, जिसके कारण बचा-खुचा कृषि कार्य भी प्रभावित हो रहा है। अगर यही हाल रहा, तो आने वाली पीढ़ी के लिए जीवन-यापन और खाद्य सुरक्षा पर एक बड़ा प्रश्नचिन्ह बन जाएगी। * रोजगार और खदान बंदी का दोहरा झटका आरोप हैं की कोयला उद्योग में विस्थापित क्षेत्र के लाखों लोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार पाते हैं। आज एसईसीएल केवल मनमानी कर रहा है, लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि आने वाले 20 सालों में ये खदानें धीरे-धीरे बंद होने लगेंगी। जब ये खदानें पूरी तरह बंद हो जाएंगी, तो प्रभावित क्षेत्र के लाखों लोगों की आजीविका का क्या होगा ? न कृषि बचेगी, न कोयला उद्योग। कोरबा के युवाओं का भविष्य किस ओर जाएगा ? * भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन में उचित मुआवजा और पारदर्शिता के अधिकार अधिनियम 2013 का हो रहा उल्लंघन 20 से 40 साल पुराने अर्जन के मामले में अभी तक रोजगार मुआवजा और पुनर्वास के मामले लंबित है, ऐसे ग्रामो को उनके पुनर्वास स्थल की व्यवस्था तक नही की जा सकी है और जबरदस्ती डंडे और बंदूक की नोक पर ग्राम को खाली कराने की कार्यवाही की जा रही है। भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन में उचित मुआवजा और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम 2013 की धारा 101 में यह स्पष्ट नियम है कि भू-अर्जन के मामले में 5 सालों तक अर्जित भूमि अनुपयोजित होने पर मुल किसानों को उनकी जमीन को वापस कर दिया जाएगा अथवा आवश्यक होने पर पुनः अर्जन की प्रक्रिया पूरी की जाएगी। किंतु उद्योगिक संस्थानों पर कार्यवाही करने के बजाय जमीन के मालिकों को नुकसान पहुंचाने और उनके मौलिक अधिकारों पर प्रहार किया जा रहा है। * छोटे खातेदारों और अर्जन के बाद जन्म के नाम पर विस्थापितों को रोजगार से वंचित कर छीनी जा रही जीविका पहले प्रत्येक खाते पर रोजगार प्रदान करने का नियम था। जिसे बदल कर दो एकड़ के अनुपात में रोजगार का प्रावधान बना दिया गया। जिससे गरीब और छोटे खातेदार रोजगार से वंचित हो गए। भू-विस्थापन का सबसे बड़ा दर्द छोटे खातेदार ही झेल रहे हैं। वह पूर्ण रूप से अपने आजीविका से वंचित हो जाते है। बताया जा रहा हैं की एक मामले में छोटे खातेदार को उच्च न्यायालय के डबल बेंच ने रोजगार प्रदान करने का आदेश भी दिया है, जिसे एसईसीएल मानने को तैयार नहीं है। वहीं अर्जन के बाद नाम से खातेदारों को रोजगार से वंचित किया जा रहा है। * आंदोलन ही एकमात्र विकल्प आगे कहा की अब यह आंदोलन केवल मुआवजे या नौकरी तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि कोरबा के दीर्घकालिक अस्तित्व की लड़ाई बननी चाहिए। यह मांगें हमें आज ही शक्तिशाली ढंग से उठानी होंगी कि एसईसीएल को केवल मुनाफा नहीं, बल्कि जिम्मेदारी भी लेनी होगी। यह आंदोलन कोरबा को बचाने, भू-विस्थापितों को न्याय दिलाने और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सुरक्षित भविष्य सुनिश्चित करने के लिए निर्णायक साबित होगा। अब चुप बैठने का समय नहीं है, संघर्ष की ज्वाला हर घर तक पहुँचानी होगी। कोरबा जिले में पूरे प्रदेश के भू-विस्थापितों का सम्मेलन आयोजित किया जाएगा, जिसमें देश के किसान आंदोलन के नेता और सामाजिक कार्यकर्ता जुटेंगे और आंदोलन की रणनीति तैयार करेंगे। जिससे भू-विस्थापितों को उनका अधिकार मिल सके। कोरबा जिले में एसईसीएल के खिलाफ चल रहे भू-विस्थापितों के मांगों का लेकर चल रहे आंदोलन का छत्तीसगढ़ बचाव आंदोलन ने भी समर्थन किया हैं। 15 अक्टूबर / मित्तल