जाति को गिन कर क्या कीजिएगा? जाति गिनकर जाति को गौरवान्वित करना है कि नाश करना है? जिसकी जैसी संख्या भारी, उसकी वैसी हिस्सेदारी- यह नारा है। जिसकी जैसी संख्या भारी है, वह तो बिहार के टिकट बंटवारे में दिख रहा है, लेकिन जिसकी संख्या हल्की है, वह गायब है। दरअसल जो जाति दबंग है, उसके हिस्से में दबंगई की सीट है। यादव, भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण और कुशवाहा ने अच्छी खासी सीट हड़प ली है। जिसे पार्टी ने टिकट नहीं दिया, वे निर्दलीय बन कर मूंछें ऐंठ रहे हैं। मुसलमानों से एनडीए को नफ़रत है, उसने टिकट देने से परहेज़ किया, लेकिन जो उनका वोट लेते हैं, उन्होंने भी उसे किनारे सरका दिया। तथाकथित धर्मनिरपेक्ष पार्टी भी जानती है कि ज्यादा मुसलमानों को सीट दी तो धार्मिक जनता उसे वोट नहीं देगी। जनता के दिलो-दिमाग में भी तो एक भूत चढ़ा दिया गया है। इसलिए धर्मनिरपेक्ष दलों के धार्मिक नेताओं ने मुसलमानों को कम से कम टिकट दिया।वैश्यों में अनेक जातियां हैं। उसकी कोई औकात बन नहीं पाती। उन्हें बस नरेंद्र मोदी जी और अमित शाह जी के नाम पर हुकुर - हुकुर करना है। जब बीजेपी ही वैश्यों को सम्मानजनक टिकट नहीं देगी तो दूसरी कौन सी पार्टी उसे टिकट देगी, इसलिए सभी पार्टियों ने उनकी उपेक्षा की । सवर्णों में भूमिहार और बैकवर्ड में यादव पहले पायदान पर हैं। टिकट के लिए आपकी प्रतिबद्धता और विचार पार्टियों को नहीं चाहिए। गांठ में पैसा, मुंह में बोली और हाथ में दूसरे को लपड़याने की ताकत चाहिए। अनंत सिंह कभी राजद से टिकट ले लेते हैं, कभी जदयू से। आनंद मोहन का सब गुनाह माफ कर उसके बेटे को टिकट मिल गया। किस पार्टी की ऐसी औकात है कि किसी आम कार्यकर्ता के झूठे मुकदमे भी वापस कर लें। इसलिए हे कार्यकर्ताओ, ऐसी पार्टियों को माफ कर दो जो सिर्फ तुम्हारा खून चूसता है। जाति- गर्व मनुष्य को छोटा करता है। मनुष्य वैश्विक समाज का हिस्सा है, उसे जाति में तब्दील कर मनुष्य सभ्यता सबसे घृणित और बुरा काम कर रही है। भारत की आबादी भले सबसे ज्यादा है, लेकिन जाति व्यवस्था में जकड़ा समाज सबसे घटिया आदमी पैदा करता है। यही कारण है कि प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठा आदमी वोट के लिए अपनी जाति का उल्लेख करता है और अमेरिका के बदतमीज राष्ट्रपति के घटिया डायलॉग में दबा रहता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी शत्रुघ्न सिन्हा के डायलॉग ‘ खामोश ‘ की तरह खामोश रहता है। एक अरब चालीस लाख की आबादी वाला यह देश सिसक रहा है। बिहार के चुनाव में जीते कोई, बिहार हार चुका है। टिकट बंटवारे की नंगई ने उसकी पोल खोल दी है। कल मैं खलीफाबाग चौक पर खड़ा था। एक तो धनतेरस। हजारों लोग बाजार में। कोई मोबाइल लूट रहा है तो कोई आइसक्रीम चाट रहा है। उस पर नाथनगर विधानसभा के लोजपा प्रत्याशी के पचासों घोड़े।ऐसा प्रत्याशी जिसे घोड़ों पर इतना भरोसा है, वह विधानसभा में कौन सा विधान बनायेगा? जीत कर यह किसका भला करेगा? यह अकेला और अनोखा उदाहरण नहीं है। जिसकी जैसी हैसियत है, उसने उतने ही घोड़े खरीद रखें हैं। अगर आपने इस लोकतंत्र से कोई उम्मीद बना रखी है तो गलती आपकी है। आपको लोकतंत्र बचाने की अलग से लड़ाई लड़नी है। ये लोग लोकतंत्र के हत्यारे हैं। इनके लिए चुनाव एक जरिया है जिसे जीत कर एशो-आराम ढूंढा जा सके। संविधान रचने वाले और आजादी के लिए शहादत देने वालों ने कभी नहीं सोचा होगा कि देश में ऐसे भी दिन आयेंगे, जब बीच दरबार में लोकतंत्र को निर्वस्त्र किया जायेगा और लोग तालियों से उसका स्वागत करेंगे। ईएमएस / 21 अक्टूबर 25