लेख
23-Oct-2025
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भारत सरकार एक बार फिर नई नीति बनाने जा रही है। इस नीति में जनता के पास जमा सोने और चांदी को घोषित कराने की तैयारी सरकार कर रही है। सरकारी अनुमान है, भारतीय घरों, मंदिरों और निजी लॉकरों में करीब 350 लाख किलोग्राम सोना मौजूद है। यह दुनिया का सबसे बडा निजी स्वर्ण भंडार है। सरकार का मानना है, अगर यह सोना औपचारिक अर्थव्यवस्था में शामिल हो जाएगा, तो देश के विदेशी मुद्रा भंडार में बड़ी वृद्धि होगी। आर्थिक संकट की स्थिति में यह देश के लिए एक मजबूत सहारा बन सकता है। इसके अलावा वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारत की एक नई साख सारी दुनिया में बन सकती है। जनता और मंदिरों के पास जो स्वर्ण भंडार है यदि यह भारतीय अर्थव्यवस्था में शामिल हो जाता है, तो भारत को आसानी से वैश्विक संस्थानों से ऋण भी मिल सकेगा। वैश्विक व्यापार करने में भारत की जो मुद्रा है उसे भी बहुत बड़ी मजबूती मिल सकती है। सवाल यह है, क्या जनता अपने कीमती गहनों और धरोहरों को सरकार के सामने घोषित करने के लिए तैयार होगी? सरकार के पिछले निर्णय और नीतियां और आम जनता के पुराने अनुभव कुछ और ही कहानी कह रहे हैं। नोटबंदी का अनुभव जनता के लिए कोई अच्छा नहीं रहा। नोटबंदी के बाद हुई परेशानी और जीएसटी के बाद जिस तरह से लोगों के ऊपर टैक्स का बोझ बड़ा है उसने वर्तमान सरकार को जनता के बीच अलोकप्रिय बनाया है। 2015 में शुरू की गई गोल्ड मोनेटाइजेशन स्कीम और सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड योजना पर भी जनता ने सरकार के ऊपर भरोसा नहीं जताया। वजह साफ थी, लोगों को डर था, कहीं सरकार उनकी निजी संपत्ति, जो वह सबसे कठिन समय के लिए एकत्रित करके रखता है। शादी विवाह और अन्य अवसर पर परिवार के सदस्यों के लिए एक सुरक्षा का कवच तैयार करता है। उस पर कहीं सरकार का नियंत्रण न हो जाए, भविष्य में सरकार टैक्स और जांच के यदि नियम बना देगी तो उसका अपने सबसे कठिन समय का जो सुरक्षा कवच है वह खत्म हो जाएगा। भारत में सोना केवल एक धातु नहीं, वरन आस्था, परंपरा और सुरक्षा का सबसे बड़ा विश्वसनीय प्रतीक है। दिन हो या रात कभी भी सोने या चांदी के माध्यम से वह विषम परिस्थितियों में भी सोने चांदी को रक्षा कवच मानता है। गांवों और छोटे कस्बों में आज भी सोने में निवेश “बैंक” से ज्यादा सुरक्षित माना जाता है। जब बैंक डूबते हैं, बैंकों की और सरकार की नीतियां बदलती हैं, तब यही सोना एवं चांदी आम परिवार की आर्थिक रीढ़ बनता है। आम जनता सोने और चांदी को परिवार के प्रत्येक सदस्य के लिए पृथक तरीके से निवेश करते हुए उन्हें अपने जीवन में आत्म विश्वास पैदा करने का काम भी करती है। गरीब हो या मध्यम वर्गीय या अमीर सभी शादी विवाह जन्मदिन और ऐसे अवसर पर उपहार देकर अपने परिवार के सदस्यों को प्रेम सद्भाव और सुरक्षा से जोड़कर रखते हैं। ऐसी स्थिति में सरकार जो योजना लेकर आना चाहती है, उससे आम लोगों का विश्वास जुड़ेगा, इसमें संदेह है। अगर सरकार सच में जनता से सोना–चांदी डिक्लेअर कराना चाहती है। उसे सबसे पहले आम जनता योजना पर विश्वास करे, यह कदम उठाना होगा। आम लोगों के मन में पारदर्शिता, सुरक्षा का भरोसा, संवैधानिक एवं कानून का विश्वास मिले बिना कोई भी नागरिक अपने घर में सोने-चांदी के रूप में जो उसने एकत्रित कर रखा है वह उजागर नहीं करेगा। सरकार को यह भी स्पष्ट करना होगा, घोषित की गई संपत्ति का उपयोग कैसे और कहां किया जाएगा। क्या इससे जनता को कोई ब्याज मिलेगा? क्या टैक्स में राहत दी जाएगी? या सरकार घोषित स्वर्ण और चांदी के भंडार पर टैक्स लगाएगी। या यह केवल सरकारी खजाने को भरने और कर्ज लेने की एक नई कवायद है? भारत का यह निजी स्वर्ण भंडार देश की अर्थव्यवस्था के लिए “स्लीपिंग कैपिटल” है। भारत के मंदिरों में टनो सोना जमा है। यह सोने का भंडार आम आदमियों की धार्मिक आस्था से जुड़ा हुआ है। अगर इसे सही नीतियों और भरोसे के साथ आम नागरिकों और देश के हित में उपयोग में लाया जाएगा। तो यह देश की विकास यात्रा को नई ऊर्जा दे सकता है। सरकार ने पिछले 11 वर्षों में जिस तरह से ताबड़तोड़ तरीके से कानून और नियम बनाए हैं उनमें बार-बार बदलाव किया है इससे सरकार की विश्वसनीयता बहुत कम हुई है। ऐसी स्थिति में सरकार जब इतना बड़ा कदम उठाने जा रही है तो सरकार को लोगों को भरोसा दिलाना पड़ेगा कि वह जो नीति लेकर आ रही है उसमें आम जनता का हित है। सरकार के लिए अभी यह सोना एक आंकड़ा हो सकता है, जनता के लिए यह एक सुरक्षा कवच और परंपरा तथा धार्मिक आस्थाओं का प्रतीक है। स्वर्ण भंडार कर्म और भाग्य से भी जुड़ा हुआ है। डिक्लेरेशन तभी सफल होगा, जब सरकार सोने की कीमत नहीं, बल्कि जनता के भरोसे का सम्मान करेगी। जनता को भरोसा दिलाने में सफल होगी। वरना यह योजना भी फाइलों में दर्ज एक और असफल कोशिश के रूप में जुड़ जाएगी। ईएमएस / 23 अक्टूबर 25