राज्य
27-Oct-2025
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- इमरजेंसी गेट पर सीटें, छत पर जानलेवा सामान! - मध्यप्रदेश में नियम तोड़ मॉडिफाइड बसों का चलन बढ़ा, यात्रियों की जान दांव पर - परिवहन विभाग की अनदेखी से भविष्य में बड़े हादसों का डर - स्लीपर और एसी बसों में सबसे ज्यादा मॉडिफिकेशन भोपाल/ इंदौर (ईएमएस)। देशभर में बीते कुछ महीनों में बसों में आग लगने और हादसों की घटनाओं ने यात्रियों की सुरक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। राजस्थान, आंध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश के शिवपुरी जैसे शहरों में हुए भीषण बस हादसों की जांच रिपोर्ट में एक चौंकाने वाला सच सामने आया है। ज्यादातर बसें “मॉडिफाइड” थीं, जिनमें सुरक्षा मानकों की खुलेआम धज्जियां उड़ाई गई थीं। इन बसों में आपातकालीन द्वार (इमरजेंसी गेट) को हटा दिया गया या उस पर सीटें बना दी गईं। कई जगह तो बस के दोनों ओर आपात द्वार ही नहीं हैं। दुर्घटना या आग की स्थिति में यात्रियों के पास बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं बचता। यही वजह है कि हाल के कई हादसों में दर्जनों यात्रियों की मौत बस के भीतर ही जलने से हुई। परिवहन विभाग की जांच टीमों ने पाया है कि पुराने ट्रक या मिनी बसों के चेचिस को जोड़-तोड़कर नई बसों का रूप दे दिया जाता है। इन बसों में न तो उचित अग्निशमन यंत्र होते हैं, न ही सुरक्षा अलार्म या ऑटो-कटिंग वायरिंग सिस्टम। कई बस ऑपरेटर केवल बाहरी साज-सज्जा पर ध्यान देते हैं ताकि बस “लक्जरी” दिखे, जबकि अंदर का ढांचा बेहद खतरनाक होता है। विशेषज्ञों के अनुसार, सबसे अधिक नियम उल्लंघन स्लीपर और निजी एसी बसों में होता है। यात्रियों की सुविधा के नाम पर अंदर केबिन और सीटों की संरचना में बदलाव कर दिया जाता है। सीटों के नीचे तक बैटरी या डीजल पाइपलाइन खींच दी जाती है, जिससे शॉर्ट सर्किट या ईंधन रिसाव की संभावना बढ़ जाती है। कई बसों में चालक के केबिन या छत पर यात्रियों के सामान के अलावा माल और पैकेट लोडिंग की जाती है। इससे बस का वजन और संतुलन दोनों बिगड़ जाते हैं। ओवरलोड होने से ब्रेक सिस्टम पर दबाव बढ़ता है और जरा सी चूक होने पर बस पलटने या आग पकड़ने की संभावना बन जाती है। परिवहन विभाग के अधिकारी मानते हैं कि निरीक्षण और फिटनेस जांच केवल औपचारिकता बनकर रह गई है। बसों की वास्तविक स्थिति की जांच शायद ही कभी की जाती है। अक्सर बसें बिना उचित अग्नि सुरक्षा उपकरण, आपातकालीन खिड़की और फायर सेफ्टी सिस्टम के सड़कों पर दौड़ती हैं। परिवहन विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि अगर ऐसे मॉडिफाइड वाहनों पर रोक नहीं लगाई गई तो भविष्य में हादसों की संख्या और बढ़ सकती है। सरकारी रिपोर्टों के अनुसार, देश में हर साल करीब 12,000 सड़क हादसे बसों से जुड़े होते हैं, जिनमें से 15% हादसों की वजह संरचनात्मक गड़बड़ी होती है। यदि सरकार अब भी नहीं चेती तो यात्रियों की जान से खेलने वाले ये “चलते ताबूत” देश की सड़कों पर और हादसे लिखते रहेंगे। मध्यप्रदेश में बढ़ता यह ट्रेंड आने वाले दिनों में एक साइलेंट डिजास्टर साबित हो सकता है, जहां बसें वाहन कम और दुर्घटनाओं के लिए चलती टाइम बम बन चुकी हैं। - गैर-प्रमाणित बॉडी बिल्डरों का बड़ा नेटवर्क इंदौर, भोपाल, ग्वालियर और जबलपुर जैसे शहरों में गैर-प्रमाणित बॉडी बिल्डरों के पास बस मॉडिफिकेशन का बड़ा नेटवर्क चल रहा है। पुराने चेचिस खरीदकर बसों को नया लुक दिया जाता है और उन्हें “लक्जरी” के नाम पर बेच दिया जाता है। कई बस मालिक सस्ती लागत में नई बस खड़ी करने के लिए इन्हीं अवैध कार्यशालाओं का सहारा लेते हैं। अंकित जैन