लेख
05-Nov-2025
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सुबह हल्की ठंड थी। माथे में हल्का दर्द महसूस हुआ। रोजमर्रे का काम कर भवदेव पांडेय की आलोचना पुस्तक ‘ आचार्य रामचंद्र शुक्ल आलोचना के नये मानदंड ‘ पढ़ने लगा। चार - पांच लेख रामचंद्र शुक्ल पर लिख चुका हूं और मुझे लगता है कि ‘ हिंदी आलोचना की दूसरी परंपरा ‘ की तलाश होनी चाहिए। एक परंपरा शास्त्रोक्त, कट्टर सनातनधर्मी और तमाम नाना पुराण के आधार पर या उसकी छाया में समृद्ध होती रही, दूसरी परंपरा लोक आधारित, श्रमण और कमिया लोगों की है। समाज, राजनीति और सत्ता भी ऐसी ही परंपराओं के आधार पर संचालित हो रही है। एक साथी ने कई किताबें भी लिखी हैं और आंदोलन में भी सक्रिय रहे। उनसे जब यह पूछा गया कि किसे वोट देंगे? तो उन्होंने साफ साफ कहा कि वह अपनी जाति के उम्मीदवार को वोट देंगे। मजा यह था कि ऐसा कहने में उन्हें कोई संकोच नहीं था। मुझे एक घटना याद आ रही है। उन दिनों में गांव में था। बिहार का चुनाव हो रहा था। सूर्यगढ़ा विधानसभा में भागवत मेहता सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार थे। उनका चुनाव चिह्न था- झोपड़ी। इसी तरह अन्य उम्मीदवारों के भी चुनाव चिह्न थे। एक निर्दलीय उम्मीदवार का चुनाव चिह्न था चांद छाप। गांव में एक गोरखिया ( गाय चराने वाला) था। वह एकदम अनपढ़ था। गांव की गायें ही चराता था। मैंने उससे पूछा -’बाबा, केकरा वोट देभो। ‘ उसने कहा- चांद छाप। दरअसल चांद छाप को कोई जानता नहीं था, न उसकी कोई चर्चा थी। मैंने पता लगाया कि चांद छाप किस उम्मीदवार का चुनाव चिह्न है तो पता चला कि गोरखिया की जाति का है। जाति बिहारियों की नस नस में है। केंद्रीय मंत्री ललन सिंह ने कुख्यात क्रिमिनल अनंत सिंह के चुनाव प्रचार का जिम्मा ले लिया है और ब्रह्म ऋषियों की भी बैठक हो रही है। आज अनंत सिंह और ललन सिंह भूमिहारों के आदर्श हैं। कभी सहजानंद सरस्वती, लंगट सिंह, श्रीकृष्ण सिंह, राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर आदि हुआ करते थे। यह नग्न जातिवाद है। हर दल में जातिवाद है। मगर जातिवाद और अपराधवाद की नंगई अभिव्यक्त हो रही है। दानापुर में भी जेल‌ में बंद रीतलाल यादव के लिए लालू प्रसाद यादव ने लंबा रोड शो किया। रीतलाल यादव आपराधिक छवि के हैं। उन पर दसियों मुकदमे दर्ज हैं जिनमें हत्या और रंगदारी मांगने के भी मुकदमे दर्ज हैं। राजनीतिक पार्टियों को क्या अच्छे उम्मीदवार नहीं मिलते? तेजस्वी यादव कह रहे हैं कि मुख्यमंत्री बनते ही दो महीने के अंदर सभी क्रिमिनल जेल में होंगे। सवाल है कि अपनी पार्टी में मौजूद क्रिमिनल भी जेल में होंगे या केवल दूसरी पार्टियों के क्रिमिनल ही जेल की हवा खायेंगे? प्रधानमंत्री कहते थे, न खाऊंगा, न खाने दूंगा। अब खाते भी हैं, खिलाते भी हैं। एक गरीब मुल्क में प्रधानमंत्री ने अपने लिए जितनी सुख सुविधाएं बटोरी हैं और अपने दोस्तों पर देश‌ अरबों लुटाया है, वह उनके वादे से मेल नहीं खाता। उनकी पार्टी के अनेक नेता हैं, जिन्हें खाने का ठिकाना नहीं था, वे करोड़ों करोड़ में खेल रहे हैं। नेताओं की बात बोली का कोई ठिकाना नहीं है। सबसे लज्जाजनक बात यह है कि झूठी बात बोलते हुए चेहरे पर कोई शिकन नहीं आती। लोग कहते थे कि नेताओं की चमड़ी हाथी की तरह है। मुझे लगता है कि हाथी को बदनाम मत कीजिए। नेताओं की संवेदनहीन चमड़ी की तुलना किसी जानवर की चमड़ी से संभव नहीं है। ये अलग प्रजाति के लोग होते हैं। इनकी चमड़ी हर नैतिकता और नीति से परहेज़ करती है। ईएमएस / 05 नवम्बर 25