भारतीय महिला क्रिकेट टीम ने वर्ल्ड कप जीतकर पूरे देश को गर्व से भर दिया है। यह ऐतिहासिक उपलब्धि न केवल खेल के मैदान में, बल्कि सामाजिक बदलाव की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई है। इस जीत ने भारतीय महिला खिलाड़ियों को नई पहचान दी है, जिससे अब उनसे उम्मीदें और जिम्मेदारियां दोनों बढ़ गई हैं। पिछले दो दशकों में महिला क्रिकेट ने लंबा सफर तय किया है, लेकिन अब भी पुरुष क्रिकेटरों की तुलना में कई क्षेत्रों में असमानता बनी हुई है। अतीत में महिला क्रिकेटरों की स्थिति बेहद कठिन थी। 1980 के दशक तक खिलाड़ियों को मैच फीस नहीं मिलती थी। वे रेलवे में कन्सेशन टिकट पर यात्रा करती थीं, साधारण हाल में ठहराई जाती थीं और मिलने वाले किट्स की गुणवत्ता भी बहुत कम होती थी। उस समय महिला क्रिकेट को “वूमन क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ इंडिया” चलाती थी, लेकिन 2006 में इसका विलय भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) में हुआ। इसके बाद महिला क्रिकेट में सुधार की शुरुआत हुई और आज यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी मजबूत पहचान बना चुकी है। बीसीसीआई ने अक्टूबर 2022 में ऐतिहासिक निर्णय लिया कि अब महिला और पुरुष खिलाड़ियों को समान मैच फीस दी जाएगी। यानी टेस्ट मैच के लिए 15 लाख, वनडे के लिए 6 लाख और टी-20 के लिए 3 लाख का भुगतान दोनों को समान रूप से मिलता है। हालांकि, सालाना कॉन्ट्रैक्ट राशि में अभी भी बड़ा अंतर है। पुरुष क्रिकेटरों को ए प्लस, ए, बी और सी ग्रेड में क्रमशः 7 करोड़, 5 करोड़, 3 करोड़ और 1 करोड़ सालाना मिलते हैं, जबकि महिला खिलाड़ियों के तीन ग्रेड ए, बी और सी में क्रमशः 50 लाख, 30 लाख और 10 लाख की राशि तय है। घरेलू क्रिकेट में भी समान स्ट्रक्चर लागू किया गया है, पर राज्य संघों में अब भी थोड़े अंतर देखे जाते हैं। आईपीएल में जहां पुरुष खिलाड़ियों की सैलरी करोड़ों में होती है, वहीं महिला क्रिकेटरों की वीमेंस प्रीमियर लीग (डब्ल्यूपीएल) में आय 10 लाख से 3.4 करोड़ तक सीमित है। यह अंतर अभी भी खेल के आर्थिक पहलू में असमानता को दर्शाता है। सुविधाओं के मामले में भी पुरुष खिलाड़ियों को बढ़त हासिल है। उन्हें बेहतर नेट्स, अत्याधुनिक ट्रेनिंग, रिहैब सेंटर और विशेषज्ञ फिजियो की सेवाएं नियमित रूप से मिलती हैं। महिला खिलाड़ियों के लिए सपोर्ट स्टाफ की संख्या अभी भी सीमित है। हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में सुधार जरूर हुआ है अब महिला टीम को बिजनेस क्लास में यात्रा और फाइव स्टार होटलों में ठहरने की सुविधा मिलने लगी है, जो पहले केवल पुरुष टीम तक सीमित थी। चिकित्सा और रिकवरी सुविधाओं में भी पुरुष क्रिकेटर आगे हैं। बड़े टूर्नामेंटों में महिला खिलाड़ियों को समान सुविधा मिल जाती है, लेकिन नियमित रूप से यह स्तर हासिल नहीं हुआ है। वहीं, मानसिक स्वास्थ्य समर्थन में भी असमानता दिखती है। पुरुष खिलाड़ियों के पास मेंटल कोच और काउंसलर स्थायी रूप से उपलब्ध हैं, जबकि महिला टीम के लिए यह सुविधा अभी शुरुआती स्तर पर है। ब्रांड वैल्यू और स्पॉन्सरशिप के मामले में भी पुरुष खिलाड़ियों का दबदबा कायम है। बीसीसीआई के मीडिया राइट्स और व्यक्तिगत एंडोर्समेंट डील्स में पुरुष खिलाड़ियों की हिस्सेदारी कहीं अधिक है। महिला खिलाड़ियों के पास अब तक सीमित अवसर रहे हैं, हालांकि डब्ल्यूपीएल की शुरुआत और वर्ल्ड कप जीत के बाद यह परिदृश्य धीरे-धीरे बदल सकता है। फंडिंग के स्तर पर असमानता अब भी बनी हुई है। 2023-24 में बीसीसीआई का कुल बजट लगभग 12,000 करोड़ था, जिसमें महिला क्रिकेट के विकास पर खर्च 1 प्रतिशत से भी कम रहा। यह अंतर स्पष्ट करता है कि महिला क्रिकेट को और अधिक संस्थागत सहयोग की आवश्यकता है। भारतीय महिला टीम की यह जीत सिर्फ एक टूर्नामेंट की सफलता नहीं, बल्कि बदलाव की एक मजबूत दस्तक है। इसने दिखा दिया है कि अगर समान अवसर और संसाधन मिलें, तो भारतीय महिला खिलाड़ी भी विश्व क्रिकेट में किसी से कम नहीं हैं। अब समय आ गया है कि यह जीत न केवल ट्रॉफी बल्कि समानता की दिशा में ठोस नीतिगत बदलाव की भी प्रेरणा बने। ईएमएस / 05 नवम्बर 25