हर राज्य में हार के बाद कांग्रेस और महागठबंधन को अब मान लेना चाहिए कि फिलहाल केंद्र हो या राज्य में राज करने का समय नही है।दुनिया भर में राष्ट्र वाद के उभार को देखते हुए यह वक्त अब रास्ट्रीय स्वयं सेवक के रथ पर बैठकर सत्ता में आई भारतीय जनता पार्टी का है और नरेंद्र मोदी व अमित शाह उसके सारथी है।राष्ट्रवाद के इस दौर की उम्र भले ही वैश्विकवाद व उदारवाद से थोड़ी कम रहे पर 50 साल से तो कम नही है।क्योंकि कांग्रेस नेता राहुल ने भी मंच से कहा है कि भाजपा 50 साल सत्ता से नही उतरेगी।निर्भर यह रहेगा कि इसके सारथी जिस तरह से विकास और भारत को बुलंदियों तक पहुंचा रहे है वैसे ही यह सिलसिला चलता रहेगा?जिस तरह से मोदी और भाजपा देश को समावेशी व कल्याणकारी बनाते आ रहे है।ऐसे में कांग्रेस के पास और महागठबंधन करने के लिए अब दो काम है।वह अपनी भूमिका को पहचाने और उसके लिए काम करे,और दूसरा राज्यो में अपने बचे हुए अस्तित्व को प्रभावी बनाने के लिए कुछ ठोस फैसला ले।क्योकि जिस इंदिरा गांधी की बात बिहार चुनाव में कर रहे है।उनका इतिहास शायद राहुल ने नही पढा है।क्योंकि हिन्दू और हिन्दुत्व की बात कर लीपापोती करने वाले राहुल जैसा ही उनके पूर्वजो ने किया है। तुष्टिकरण की इस राजनीति ने राहुल और कांग्रेस को धराशायी कर दिया है।अनपढ़ और निरक्षर मतदाता अब नही है।मोबाइल और इंटरनेट से जुड़े इस भारतीय समाज के लिए मुश्किल डगर नही है।शिक्षित समाज को राहुल गुमराह नही कर सकता है।बिहार चुनाव में डोनाल्ड ट्रम्प, अडानी और अम्बानी पर मोदी को निशाना बनाने वाले राहुल गांधी को यह आभास नही है कि विदेश नीति पर क्या बोलना चाहिए और क्या नही बोलना चाहिए।क्योंकि भारतीय विदेश नीति वर्तमान में सबसे अच्छी है।विदेश मंत्री एस जयशंकर की नीतियां आज दुनिया के सभी देशों को भा गई है।राजनीति और व्यवहारिक ज्ञान नही होने से देश चलाने में मुश्किले आती है।भारत को बुलंदियों पर पहुंचाने वाले नेताओं को हर बात की समझ है।नालन्दा विश्वविद्यालय की बात करने वाले राहुल को ज्ञात होना चाहिए कि इस धरोहर के लिए कांग्रेस जिम्मेदार है।भाजपा का शासन दस वर्ष से आया है।लेकिन 60 सालों तक कांग्रेस की सत्ता रही है।अतिपिछड़ों की हालत कांग्रेस की देन है।अब महागठबंधन वोट लेने के लिए दलित,आदिवासी और यादव की शरण मे गए है।इनकी दुर्दशा महागठबंधन ने ही की है।बिहार में मेनिफेस्टो बताकर मतदाताओ का मिजाज भांपने निकली राजनैतिक पार्टियां अब विकाशील दल के साथ जाने का पूरा मन बना लिया है।बिहार अब वो बिहार नही रहा है जहां लालू की धोस से जनता मजबूर थी।बिहार ने अनन्तसिंह की गिरफ्तारी से सियासत गरमा गई है।मोदी ने आरा में सभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि बिहार की जनता ने ठान लिया है कि अब फिर से एनडीए की सरकार बनाने का मन बना लिया है।बिहार विधानसभा में धनबल और बाहुबल का खुलेआम प्रदर्शन किया जा रहा है।बाहुबलियों की सम्पति करोड़ो में है।वे चुनाव मैदान में है।मुंगेर के लिए प्रचार प्रसार करने पहुंचे नेताओ और जनता के बीच समन्यव स्थापित करने के लिए चर्चा की जा रही है। स्थानीय लोगो के मुद्दे भी हावी है।बिहार में प्रियंका और तेजस्वी अपराध की बात करते सुनाई दिए है।जिस पार्टियो ने देश की आजादी के बाद लोगो की विरासत में कट्टा, क्रूरता और कुशासन ही दिया है।उनके मुह से यह बात शोभा नही देती है।कांग्रेस की अराजकता पूरा देश जानता है।जंगलराज वाले नीतीश सरकार पर जंगलराज का आरोप लगा रहे है।यह तो वही हुआ कि चोर कोतवाल को डण्डे।महिला सुरक्षा की बात दोहराई जा रही है।लेकिन एनडीए की पहली प्राथमिकता रही है कि महिलाओ और बेटियों की सुरक्षा सबसे पहले अमल में रखी जाती है। यह समय महागठबंधन के लिए हताशा का है।क्योंकि कांग्रेस कई सालों से सत्ता से बाहर है और उसकी हड्डियो में भर गए आलस को दूर कर अपने को नए जोश और सोच भरने का कार्य करना चाहिए।कुदरत ने उसे नए रूपांतरण का समय दिया है।आजादी से पहले से ही नेहरू परिवार की प्रधानता रही और आजादी के बाद तो खुद कांग्रेसी ही उस परिवार के बिना अपने अस्तित्व की कल्पना नही कर सके।नेहरू गांधी परिवार इस देश पर कब्जा जमाना रखना चाहता है।कांग्रेस के दिग्गज नेता अपने बल पर खड़े हो पार्टी को आगे ले जाने की हिमत ही नही रखते।क्योकि कांग्रेस खोई हुई राजनीति को वापस प्राप्त करने की कोशिश कर रही है।लेकिन जिस तरह सेक्युलवाद की आड़ में देश के साथ जो व्यवहार किया गया था अब वह शिक्षित समाज के लिए किसी घुसपैठ से कम नही है। कांग्रेस के नेता राज परिवार को बाहर लाए थे और आज वे उसी युवराज की राजनैतिक अपरिपक्वता से चुभन महसूस कर रहे है।राहुल किस समय क्या बोल देते है।उसी का कारण है कि कांग्रेस हाशिये में चली जाती है।राहुल कहते है कि मैं इतना आरोप लगा रहा हूं लेकिन मोदी मेरे आरोपो का जवाब क्यों नही देते है?यह राहुल और कांग्रेस को समझना चाहिए?क्योंकि बिना जवाब दिए ही कांग्रेस का पतन दिनों दिन बढ़ता जा रहा है।जिस मुद्दे के लिए कांग्रेस को लड़ना चाहिए, उस मुद्दे को छोड़कर सीधा हमला मोदी पर ही किया जा रहा है।इसलिए कांग्रेस के लिए ठीक नही है।महागठबंधन की परीक्षा की घड़ी है।आर्थिक और सामाजिक स्तर पर मोदी ने कई फैसले लिए है।और मोदी आगे बढ़ा रहे है।मोदी और भाजपा का एक ही सपना है कि देश दुनिया की महासत्ता बने,लेकिन महागठबंधन के पास देश को समृद्धिशाली बनाने का विजन नही है।रास्ट्रीय पार्टी को तीसरे टर्म तक सफलता पूर्वक सता में बनाए रख पाना राजनीतिक व कूटनीति समझ के बिना संभव नही है।दुनिया मे भारत की विदेश नीति एक महत्वपूर्ण स्तर तक पहुंच गई है।वही कांग्रेस विदेशो में लोकतंत्र और मोदी की बुराई करके वाहवाही लूटने के असफल प्रयास करते है।मोदी और संविधान पर निशाना साधने वाले नेता भारत की एकता और अखंडता को अक्षुण्ण रखने के लिए प्रयास कर सकते है?आज कांग्रेस के पास जनाधार रखने वाले नेताओं की पार्टी में कमी महसूस की जा रही है।शायद राहुल गांधी की सक्रिय राजनीति में कोई रुचि नही दिखती है।अगर रुचि होती तो मुद्दे पर सियासत करने की जगह सीधा मोदी पर जूठा आरोप लगाकर करोड़ो लोगो की आस्था पर कुठाराघात कर रहे है।राहुल अपनी जिम्मेदारी समझे?पार्टी में दूरदर्शिता,तुरन्त फैसले लेने की क्षमता, साहस व लोगो को अपने साथ जोड़ने मि क्षमता रखने वाले नेताओं की कांग्रेस में कमी है।भारतीय राजनीति के इतिहास में अब तक सबसे ताकतवर नेता मोदी है जिनकी पटकनी कुटिल राजनीति के जानकार भी नही दे सकते है।मोदी को देवतुल्य मानने वालों की कमी नही है।कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजयसिंह दिग्गी ने जीता हुआ गोवा भी भाजपा ने छींन कर अपनी झोली में डाल दिया।कांग्रेस के बड़े दिग्गज नेता आज या तो भाजपा में है या राजनैतिक सन्यासी बन गए है।कांग्रेस की नीतियों को आज कोई समर्थन नही करता है।तुष्टिकरण की रेस में कांग्रेस फिस्सडी साबित हुई है।भाजपा के घाघ नेता मोदी और अमित शाह की जोड़ी की चालो के सामने नाकाम हो रहे है।कांग्रेस के सामने चुनौतियो को देखते हुए फिर से मंथन करने की जरूरत है।धीरे धीरे गांधी परिवार कांग्रेस को पीछे ले जा रहा है।शायद कांग्रेस के लिए अब राह आसान नही है।राहुल जिस तरह से मोदी पर अनर्गल बयानबाजी करते नजर आ रहे है।वही पर कांग्रेस की बैचेनी बढ़ती जा रही है।महागठबंधन के दावे,वादे टाय टाय फीस होते नजर आ रहे है।राहुल गांधी को नेहरू गांधी परिवार के एक ऐसे अंतिम व कमजोर व्यक्ति के रूप में याद किया जाएगा।जिसके नेतृत्व में पार्टी रसातल में आते आते अपने ही मौत मर गई है।राहुल में अगर दम है तो कांग्रेस की विचारधारा को बदलकर नए सिरे से पार्टी को खड़ा करने की फिर से कोशिश करे।अभी तो सारा दोष राहुल के मत्थे मढ दिया है लेकिन पुराने व नए केंद्र और राज्य में बैठे नेता खुद बताएं कि वे पार्टी को कैसे आगे ले जाने की क्षमता रखते है।कांग्रेस ने कर्नाटक में आरएसएस पर प्रतिबंध लगाने का मन बनाया था।लेकिन हाईकोर्ट ने फैसला देते हुए कांग्रेस को लताड़ लगाई।इस तरह की मानसिकता वाली कांग्रेस के लिए क्या कहना है।रास्ट्रीय राजनैतिक पार्टी को 30 साल से सत्ता से बाहर रहना बड़ा मुश्किल कार्य है।30 साल का मतदाता कांग्रेस को जानता और समझ नही सकता है।महागठबंधन की जीत या हार कांग्रेस के स्थान को तय करेंगी।लेकिन यह जवाबदेही खुद अकेले राहुल की नही है।यह पार्टी आलाकमान की भी है।आजादी के बाद कई वर्षों तक सता में रही कांग्रेस ने समाज को जोड़ा ही नही था।बच्चे, बूढ़े, युवक,महिलाओं, गरीबो के जीवन स्तर को ऊपर उठाने के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, प्रशिक्षण आदि के कार्य में कोई परिवर्तन नही आया।आज भाजपा भारत की सर्वोच्च सता हासिल कर अपने हिंदुव के एजेंडे को कार्यरूप देने में लगा है।कांग्रेस ने इतने वर्षों में अपने जनाधार वाले सभी संगठनो को मार डाला।दुरुस्त लोगो के मन मे समाई कांग्रेस ने सत्ता सुख में डूब जाने के बाद वह सभी भुला दिए गए।विभिन्न राज्यो में एक के बाद एक राज्य में हार इस बात का कारण है कि वक्त आ गया है कि कांग्रेस अपनी नई भूमिका में फिर से रचनात्मक कार्यो की और मोडे ।अपने खोए हुए जनाधार वापस पाने के लिये ही नही,बचे हुए जनाधार बचाने के लिए भी यही जरूरी है।कांग्रेस को मंथन करना है अगर इसी तरह चलता रहा तो कांग्रेस के दिन बहुत कठिन आने वाले है।विकास के नाम पर कांग्रेस की चुप्पी उसे कांग्रेस से दूर करने के लिए काफी है। (यह लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं इससे संपादक का सहमत होना अनिवार्य नहीं है) .../ 5 नवम्बर/2025