-कश्मीर में जलवायु परिवर्तन का गंभीर असर श्रीनगर,(ईएमएस)। कश्मीर घाटी में जलवायु परिवर्तन का असर न सिर्फ फसलों और इंसानी जीवन पर पड़ता दिख रहा है, बल्कि इससे जंगली जानवर भी प्रभावित हो रहे हैं। दिसंबर महीने का प्रथम सप्ताह गुजरने के बाद भी कश्मीर की वादियों में बर्फबारी अपने शबाब में नहीं पहुंची है। इस कारण हिमालयी काले भालू, जिन्हें स्थानीय भाषा में हापुत कहा जाता है, इंसानी बस्तियों में भोजन तलाशते करने प्रवेश कर रहे हैं। आमतौर पर ये भालू दिसंबर से मार्च तक हाइबरनेशन में रहते हैं, लेकिन इस साल हालात बदले नजर आ रहे हैं। न बर्फ है, न जंगलों में पर्याप्त भोजन। नतीजा यह, कि भूखे भालू अब मानव बस्तियों का रुख कर रहे हैं, जिससे लोगों के लिए खतरा बढ़ गया है। वन्यजीव विभाग के अधिकारियों के अनुसार, केवल नवंबर में ही करीब 50 भालुओं को पकड़कर सुरक्षित स्थानों पर छोड़ा गया, जो पिछले कई वर्षों का रिकॉर्ड तोड़ आंकड़ा है। ये भालू गांवों के सेब–अखरोट के बागों में घुस रहे हैं, कूड़े के ढेर खंगाल रहे हैं और कभी–कभी श्रीनगर के डल झील किनारे शहर के बीचों-बीच दिखाई दे रहे हैं। वन्यजीव विशेषज्ञों की मानें तो इन भालुओं के हाइबरनेशन के लिए लगातार ठंड और बर्फ जरूरी है। अब चूंकि हाल के कुछ वर्षों से तापमान सामान्य से ज्यादा बना हुआ है और बर्फबारी या तो देर से हो रही है या बिल्कुल नहीं। इससे जंगलों में जंगली फल, मेवे और कीट-पतंगों की उपलब्धता घट गई है, जिसके चलते भालू भोजन की तलाश में गांवों की ओर रुख कर रहे हैं। इंसान–भालू टकराव बढ़ा भालुओं के बार-बार गांवों में आने से खतरा दोनों तरफ बढ़ रहा है। इस साल अब तक 15–20 लोग भालुओं के हमलों में घायल हो चुके हैं। कई बार ग्रामीण गुस्से में भालुओं को नुकसान भी पहुंचाते हैं। भालुओं को पकड़कर जंगल में छोड़ा जाता है, लेकिन वे फिर लौट आते हैं क्योंकि इंसानी इलाकों में उन्हें भोजन आसानी से मिल जाता है। ग्लोबल वार्मिंग का सीधा असर मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण कश्मीर का मौसम तेजी से बदल रहा है। पहले नवंबर के अंत तक ऊंचाई वाले इलाकों में बर्फ पड़ जाया करती थी, लेकिन अब दिसंबर के मध्य तक भी इंतजार करना पड़ रहा है। तापमान के बढ़ते उतार–चढ़ाव ने वन्यजीवों के प्राकृतिक व्यवहार को प्रभावित किया है। हिदायत/ईएमएस 09 दिसंबर 2025