क्षेत्रीय
16-Nov-2025
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-भव्य पिच्छिका परिवर्तन समारोह सम्पन्न, मुनिसंघ ने धारण की नई पिच्छिकाएं - पिच्छिका निर्वाण की प्रथम सीढ़ी: निर्यापक संत मुनिश्री योगसागरजी महाराज गुना (ईएमएस)। शहर में चातुर्मासरत आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज एवं आचार्यश्री समय सागरजी महाराज के गृहस्थ जीवन के सगे भाई निर्यापक संत मुनिश्री योग सागरजी महाराज का ससंघ भव्य पिच्छिका परिवर्तन समारोह रविवार को गौशाला में संपन्न हुआ। इस मौके पर मुनिसंघ ने पुरानी पिच्छिकाओं को उन गृहस्थ श्रावकों को सौंप जिन्हें जीवन में नियम-संयम के व्रत लिए। वहीं मुनिसंघ ने अपनी नवीन पिच्छिकाएं धारण की। इसके पूर्व दोपहर 1 बजे से पाश्र्वनाथ बड़ा जैन मंदिर से पिच्छिकाओं का जुलूस मुनिसंघ के सानिध्य में कार्यक्रम स्थल पहुंचा। यहां आचार्यश्री की पूजन उपरांत मुनिश्री निरोग सागरजी महाराज एवं बह्मचारी धीरज भैयाजी के निर्देशन में पिच्छिका परिवर्तन कार्यक्रम आरंभ हुआ। इस अवसर पर ज्येष्ठ श्रेष्ठ निर्यापक मुनिश्री योगसागर जी महाराज की पुरानी पिच्छिका लेने का सौभाग्य शोभना राजीव जैन को प्राप्त हुआ। जबकि मुनिश्री निरोगसागरजी महाराज की पुरानी पिच्छिका मंजू शैलेन्द्र जैन मोराजी सागर, मुनिश्री निर्मोहसागरजी महाराज की पुरानी पिच्छिका मधु शैलेन्द्र जैन सागर, मुनिश्री निरामयसागरजी महाराज की पुरानी पिच्छिका अर्चना सनमतकुमार जैन आरोन वाले एवं मुनिश्री निर्भीकसागरजी महाराज की पुरानी पिच्छिका लेने का सौभाग्य नीति विनोदकुमार जैन भोपाल को प्राप्त हुआ। वहीं ऐलकश्री सुधारसागरजी महाराज की पुरानी पिच्छिका स्वाति अमित जैन, ऐलकश्री चैत्य सागरजी महाराज की पुरानी पिच्छिका सुनीता विजयकुमार जैन कदवाया परिवार, ऐलकश्री अपारसागरजी महाराज की पुरानी पिच्छिका सुषमा अनिलकुमार जैन बरखेड़ा परिवार, ऐलकश्री तन्मयसागरजी महाराज की पुरानी पिच्छिका शिल्पी विवेककुमार जैन चौधरी मोहल्ला, ऐलकश्री आगतसागरजी महाराज की पुरानी पिच्छिका लेने का सौभाग्य अल्का संजीवकुमार जैन म्याना परिवार गुना को प्राप्त हुआ। इस वर्ष निर्यापक मुनिश्री योग सागरजी महाराज की नवीन पिच्छिका सम्मेद शिखरजी एवं अन्य मुनिराजों की पिच्छिकाएं अशोकनगर जिले से बनकर आई हैं। उल्लेखनीय है कि दिगंबर जैन मुनियों के लिए पिच्छिका अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण साधना का उपकरण माना जाता है। पिच्छिका मोरपंखों से बनी होती है, जिसे मुनि अपने साथ रखते हैं। इसका मुख्य उद्देश्य अहिंसा के सिद्धांत का पालन करते हुए मार्ग में आने वाले सूक्ष्म जीवों को हटाकर उन्हें अनजाने में भी हानि पहुँचने से बचाना है। दिगंबर मुनि पिच्छिका से बैठने, चलने या किसी स्थान पर ठहरने से पहले भूमि को हल्का स्पर्श करते हैं, ताकि वहां उपस्थित छोटे-छोटे जीव हट जाएं और उन पर पैर न पड़े। यह अहिंसा, करुणा और सभी जीवों के प्रति संवेदना का प्रतीक है। पिच्छिका मुनियों की साधना का प्रतीक भी मानी जाती है। यह उन्हें स्मरण कराती रहती है कि मुनि मार्ग अहिंसा, संयम, जागरूकता और आत्मशुद्धि का मार्ग है। पिच्छिका उनके व्रतों की पवित्रता और जीवन के हर क्षण में सावधान रहने का संकेत देती है। इसी कारण दिगंबर परंपरा में पिच्छिका का स्थान अत्यंत सम्माननीय है। इस मौके पर मुनिश्री योग सागरजी महाराज ने कहा कि पिच्छिका निर्वाण की प्रथम सीढ़ी है। - सीताराम नाटानी